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सप्तमोऽधिकारः
[ २०५ लम्बाई साढ़े दश योजन प्रमाण है, इसीलिये दश योजन महरे सरोवर को ध्यान करती हुई जल से अर्ध योजन (दो कोस) प्रमाण ऊँची है ।।७७-८१।।
अमीषा व्यासेन वर्णनं क्रियते :--
द्रहार प्रत्येक जलाद दिकोशोकिछत योजनविस्तीर्ण साक्रोशायतकादशसहस्रपद्मपत्राङ्कितं क्रोशध्यासपि कान्वितम् एकैकं शाश्वतं कमलं स्यात् 1 कमलं कमलं प्रति कणिकायाम् नानामणिमयं कौर्शकदीर्घ अर्धक्रोशव्यासं पादोनक्रोशोच्चं रत्नवेदिकातोरणाद्यलंकृतं एक भवनं भवेत् । तेषु सर्वभवनेषु स्वस्व परिवारदेवावृताः प्रागुक्तनामाङ्किता: दिव्यरूपाः नागकुमार्यो वसन्ति । मुख्यकमलगेदादाग्नेयनिशिदेव्याः द्वात्रिंशत्सहस्राणि अन्तः परिषद्देवानां पद्मालयाः सन्ति । दक्षिरपदिग्भागे मध्यपरिषत्सुराणां चत्वारिंशत्सहस्राम्बुजाउयगृहाइच । नैऋत्यदिशि बाह्य परिषद् गीर्वाणानां प्रष्टचत्वारिंशत्सहस्राणि अब्जसौधा: सन्ति । वायुकोणशादिशोः सामान्यकामराणां चतुःसहस्राम्भोज प्रासादाश्च । पश्चिमाशायां सप्त सप्त सैन्याङ्कित सप्तानीकानां सप्तपद्मगेहाः स्युः । पूर्वादि चतुद्दिक्षु अङ्गरक्षाणां षोडशसहस्रपद्याङ्कितप्रासादाः सन्ति । देव्यः पद्म परितः अष्टदिग्विदिक्षु प्रतोहारोत्तमानामष्टोतरशतकमलगेहाश्च । इत्युक्ताः सर्वे एकत्रोकृता एकलक्षचत्वारिंशत्सहस्र कशलषोडशप्रमाणा: मुख्यपद्मालयावर्षायाम व्यासोत्सेधाः एकक जिनालयवेदिकातोरणाद्यलंकृताः सुगन्धिपद्माश्रितरत्नगृहा बिज्ञयाः । सर्वे विंशतिदहारणां पिण्डीकुताः देवीपमैः समं शाश्वता मणिपद्माः अष्टाविंशति लक्षद्विसहस्रत्रिवातविंशतिप्रमाणाः भवेयुः तावन्तः पद्यस्था प्रालयाश्च ।
अब कमलों का तथा कमल स्थित भवनों के व्यास प्रादि का एवं उनमें निवास करने वाली नागकुमारियों के परिवार प्रादि का वर्णन करते हैं:--
अर्थ :-प्रत्येक सरोवरों के मध्य में एक एक अकृत्रिम कमल हैं । जो एक योजन चौड़े और और जल से दो क्रोस प्रमाण ऊँचे हैं, तथा डेढ़ कोस लम्बाई वाले ग्यारह हजार पत्रों से युक्त और एक कोस विस्तार वाली कणिका से समन्वित हैं । प्रत्येक कमल को कणिका पर अनेक मरिणयों से निमित, रत्नमय वेदिका एवं तोरण प्रादि से अलंकृत, एक कोस लम्बे, अर्ध कोस चौड़े और पौन कोस ऊंचे एक एक भवन हैं । इन समस्त (२०) भवनों में अपने अपने परिवार देवों से आवृत, पूर्वोक्त नाम वाली दिव्यरूप धारणी नागकुमारियां निवास करती हैं। इन देवियों के प्रधान कमल स्थित भवनों से प्राग्नेय दिशा में अभ्यन्तर परिषद् देवों के ३२००० पद्मालय हैं।
दक्षिण दिशा में मध्य पारिषद् देवों के ४०००० कमलयुक्त भवन हैं 1 नैऋत्य दिशा में बाह्य पारिषद् देवों के ४८००० पद्मालय हैं। वायव्य और ईशान दिशा में सामानिक देवों के ४००० अम्भोज प्रासाद हैं । पश्चिम दिशा में सात सात सेनाओं से मण्डित सात अनीकों के सास ( ७ ) पद्म