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________________ २०४ ] सिद्धान्तसार दोपक अर्थ:- अन्य दो ( विचित्र और चित्र ) यमकगिरि पर्वतों से पांच सौ योजन जाकर देवकुरु भोगभूमि में स्थित सीतोदा नदी के मध्य में पाँचद्रह हैं। इन पांचों ग्रहों का नाम निषध द्रह, देवकुरुद्र, सूर्यद्रह, सुलह और विद्युत्प्रभद्र है। इन रमणीक पाँचों द्रहों का समस्त वर्णन श्रीदेवी के पद्मद्रह के समय है । द्रह स्थित कमलों पर निर्मित प्रासादों में क्रमशः निषधकुमारी, देव (कुरु) कुमारी सूर्य कुमारी, सुलसाकुमारी और विद्युत्प्रभा नाम की पाँच नागकुमारियाँ निवास करती हैं ।।७३-७६ ।। अब अन्य दश द्रहों को प्रवस्थिति एवं समस्त ग्रहों के प्रायाम प्रादि का कथन करते हैं :-- पुनः पंच द्रहाः पूर्व भद्रशालवने परे । मध्ये सीतामहानचा स्युः प्राग्नामादि संयुताः ॥७७॥ पश्चिमे भद्रशालेऽन्ये सन्ति पंच ब्रहा युताः 1 निषषाधाख्यदेवोभिः सीतोदाभ्यन्तरे क्रमात् ॥७८॥ एते पिण्डीकृताः सर्वे ब्रहाः विंशतिरूजिताः । वज्रमुलाः सपद्मायोजन पंचशतान्तराः ॥७६॥ सहस्रयोजनायामा दक्षिणोत्तर पार्श्वयोः । पूर्वापर सुविस्तीर्णाः शतपंच सुयोजनंः ||८०|| जलान्तसमर्वयं नालक्रोशद्वयोच्छ्रिताः । जलाद्दशावगाहाः स्युर्वेदिकास्तोरखाङ्किताः ॥ ८१ ॥ अर्थ:- इसके पश्चात् पूर्णभद्रशाल वन में स्थित सोता महानदी के मध्य में पूर्व कथित नीलवान् उत्तरकुरु आदि नामों से युक्त अन्य पाँच द्रह हैं। जिनमें नीलवान् श्रादि देवियां निवास करती है । पश्चिम भद्रशाल वन में स्थित सीतोदा नदी के मध्य में निषधवान् श्रादि पुत्र नाम वाले अन्य पांच ग्रह हैं, जिनमें निषेध प्रादि नाम वालीं पाँच नागकुमारियाँ क्रमशः निवास करतीं हैं। ये सभी ब्रह् एकत्रित जोड़ने से बीस होते हैं । अर्थात् ५ द्रह उत्तरकुरु सम्बन्धी और ५ पूर्व भद्रवाल सम्बन्धी सोता नदी के मध्य में हैं, तथा ५ देवकुरु और ५ पश्चिमभद्रशाल सम्बन्धी सीतोदा के मध्य में हैं। वज्रमय है मूल जिनका ऐसे कमलों से युक्त इन पांचों द्रहों का पारस्परिक अन्तर पांच सौ योजन प्रमाण है । ये पाँचों वह दक्षिणोत्तर दिशा में एक हजार योजन लम्बे और पूर्व-पश्चिम पांच सौ योजन चौड़े हैं। एक एक द्रह दश योजन गहरे, रत्नमयवेदिकानों से युक्त और मरिमय तोरणों से मण्डित हैं। प्रत्येक द्रहों में स्थित कमल समूहों को नाल वैड्रमय है श्रीर जल से दो कोस ऊँची है । अर्थात् पद्मनाल की कुल I
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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