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________________ २०२ 1 सिद्धान्तसार दीपक इन दोनों पर्वतों के मूल में अर्थात् पृथ्वोतल पर और शिखरतल पर रमणीय वनवेदी से युक्त। जिनालय हैं तथा जिनालयों के अग्रभाग तोरणों से सुशोभित हैं। दोनों पर्वतों के शिखरों पर स्थितः मरिणयों से शोभायमान उन्नत रत्नमय उन्नत प्रासादों में एक पल्योपम प्रमाण प्राय बाले यमक और ! काञ्चन नाम के देव अपने परिवार सहित निवास करते हैं। इनके ये प्रासाद साढ़े बासठ योजन ऊंचे और सबा इकतीस योजन प्रमाण लम्बे एनं चौड़े हैं। इन्हीं दोनों पर्वतों के शिखरों पर सात अनीकों के, सामानिक देवों के, अङ्गरक्षकों के, चार पट्ट देवाङ्गनामों के और तीनों परिषदों के देवों के भवन पंक्तिबद्ध स्थित हैं। अब विचित्र-चित्र नामक यमक पर्वतों का विवेचन करते हैं :-- निषधस्योत्तरे गत्वा सहस्त्रयोजनान्यपि । स्तो द्वौ यमकशैलौ सीतोदायास्तटयोद्धयोः ॥३॥ "विचित्रचित्रकूटाख्यौ पूर्वोक्त यमकप्रमौ । चैत्यालयगृहारामध्यासोत्सेधाविवर्णनः ।।६४॥ अनयो मधिन सौधेषु प्रागुक्तोच्चादि शालिषु । चित्रविचित्रनामानौ गीर्वाणौ वसतोऽद्भुतौ ॥६५।। पूर्वोदिताङ्गरक्षादि सर्वदेवाग्रयोषिताम् ।। एतयोः शिखरे सन्ति प्रासादतोरणादयः ।।६६।। अर्थ:-निषधकुलाचल से उत्तर में एक हजार बोजन प्रागे जाकर सीतोदा नदी के दोनों तटों पर विचित्र और चित्र कट नाम के दो यामक गिरि हैं। इन पर्वतों पर स्थित जिन चैत्यालयों, प्रासादों एवं वनों के व्यास एवं उत्सेध आदि का समस्त बर्णन पूर्व कथित दोनों यमक शैलों के सदृश है। ॥६३-६४।। इन दोनों शैलों के शिखर पर स्थित पूर्वोक्त ऊँचाई आदि से युक्त शोभायमान प्रासादों में : चित्र विचित्र नाम के अद्भुत पुण्यशाली देव निवास करते हैं। इन पर्वतों के शिखरों पर पूर्ण कथित अङ्गरक्षक ग्रादि सर्ग देवों के और दोनों देवों को चार-चार प्रमुख देवाङ्गनाओं के तोरण आदि से युक्त प्रासाद हैं ।।६५-६६।। अब सीता नदी स्थित पञ्चद्रहों का वर्णन करते हैं :-- यमकादी परित्यज्य यावत् पञ्चशतान्तरम् । योजनानां सरित्सीताया उत्तरकुरुक्षितेः ॥७॥ १. चित्रविचित्रकूटाख्यो . ज, न.
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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