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________________ षष्ठोऽधिकार : [ १९७ अर्थः-देवकुरु और उत्तरकुरु इन दोनों क्षेत्रों का और इन क्षेत्रों में से प्रत्येक के वाण का प्रमाण ११८४२० योजन है । अब भोगभूमि में उत्पन्न होने वाले जीवो की गति प्रगति का एवं और भी अन्य विशेषतामों का वर्णन करते हैं: भता निदर्शनाजीवास्त्रिधा सत्पात्रदानतः । जायन्ते भोगिनश्चार्याः क्रमाद् भोगमहीत्रिषु ॥३१॥ न रोगो न भयो ग्लानिल्पिमृत्युन दीनता । न वृद्धत्वं न नीहारो नाहो ! षड्ऋतु संक्रमः ॥३२॥ नानिष्टसलामो नेटवियोगो नापमानता । नान्यत् दुःखादिकं किञ्चित् क्षेत्रसदमावतो नृणाम् ॥३३॥ केधलं मृत्युपर्यन्तं पानवानज-पुण्यतः। बशधाकल्पवृक्षोत्थान मोगान भुञ्जति तेऽनिशम् ॥३४॥ उत्पादोमृतिरार्याणां युग्मरूपेण जायते । क्षुतात् मृत्युनंराणां स्यान स्त्रीणां जम्भिकयात्र च ।।३।। ततस्ते स्वार्यभावेनार्या यान्ति देवसवगतिम् । सत्पात्रवानपुण्येनामीषां नास्त्यपरा-गतिः ॥३६॥ अर्थ:- भद्रमिथ्या ष्टि जीव उसम, मध्यम और जघन्य सत्पात्रों के दान के फल से क्रमशः उत्तम, मध्यम और जघन्य इन तीन भोगभूमियों में पायं और प्रार्या रूप से उत्पन्न होते हैं । उत्तम क्षेत्र के सद्भाव से वहाँ के जीवों के रोग नहीं होते, न वहाँ भय है, न ग्लानि है. न अल्पकाल में मृत्य होती है, न दोनता है, न जीवों को वृद्धता पाती है. न निहार होता है, अहो ! और न छह ऋतुओं का सञ्चार होता है, न अनिष्ट का सयोग होता है, न इष्ट का वियोग होता है, न अपमान मादि का दुःख है, और न अन्य ही किञ्चित् दुःख वहाँ प्राप्त होते हैं, किन्तु वे पात्रदान से उत्पन्न होने वाले पुण्य के फल से मरण पर्यन्त दशप्रकार के कल्पवृक्षों से उत्पन्न होने वाले भोगों को निरन्तर भोगते हैं । वहाँ पर स्त्री पुरुष युगल रूप से एक साथ उत्पन्न होते हैं और एक ही साथ मरते हैं। पुरुषों की मृत्यु छींक से और खियों की मृत्यु जम्भाई से होती है। भोगभूमि के जीव अपने प्रार्य एवं प्रार्याधाव से अर्थात् सरल परिणामी होने से मरण के बाद देवगति को ही प्राप्त करते हैं, सत्पात्रों को दिये हुये दान के फल से उन जीवों को नरक, तिर्यञ्च एवं मनुध्य गति की प्राप्ति नहीं होती ॥३५-३६।।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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