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________________ [ २६ ] उसकी किरणें संतप्त सुवर्णाभ निषध पर्वत पर पड़ने से प्रातः पूर्व में और सायं पश्चिम में लालिमा प्रकट होतो है ज्यों ही सूर्य निषध पर्वत से दूर हो जाता है त्यों ही लालिमा समाप्त हो जाती है । अतः इस निषध पर्वत का अस्तित्व सिद्ध है उसके आगे जाने पर सुमेरु पर्वत के दर्शन हो सकते हैं । जिस मनुष्य की शक्ति कूपमण्डक के समान अत्यन्त सीमित है वह अपनी गति से बाहर पाये जाने वाले पदार्थों के अस्तित्व के प्रति संशय का भाव रक्ले, यह पाश्चर्य की बात है । मेरा तो विश्वास है कि जिस प्रकार जैन शास्त्र में प्रतिपादित तत्त्व प्राज विज्ञान की कसौटी पर खरे उतर रहे हैं उसीप्रकार जैन भूगोल के सिद्धांत भी विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरेंगे । असमञ्जसता वहां हो जाती है जहां जिन्हें जैन भूगोल का ज्ञान है उन्हें विज्ञान सिद्ध अाधुनिक भूगोल का ज्ञान नहीं है और जिन्हें आधुनिक भूगोल का ज्ञान है उन्हें जैन भूगोल का ज्ञान नहीं है। काश, कोई दोनों भूगोलों का ज्ञाता हो और वह पक्षपात रहित होकर अनुसन्धान करे तो यथार्थता का निर्णय हो सकता है। फिर एक बात यह भी है कि सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थों का निर्णय प्रागम प्रमाण से ही हो सकता है, प्रत्यक्षादि प्रमाणों से नहीं । जहाँ प्रत्यक्ष अनुमान और शाब्द प्रमाण की गति कुण्ठित हो जाती है वहां पागम प्रमाण का ही प्राश्रय लेना पड़ता है । आगम की प्रामाणिकता बक्ता की प्रामाणिकता पर निर्भर रहती है । जैन भूगोल के उपदेष्टा प्राचार्य विशिष्ट ज्ञानी तथा माया ममता से रहित थे अतः उनकी प्रामाणिकता में संशय का अवकाश नहीं है । कहने का तात्पर्य यह है कि प्राधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में पड़कर 'पागम की श्रद्धा से विचलित नहीं होना चाहिये । सिद्धान्तसार दीपक का प्रकाशन--- मैंने देखा है कि प्राचार्यकल्प श्रुतसागरजी महाराज के हृदय में जिनवाणी प्रकाशन के प्रति अनुपम अभिरुचि है । उन्हीं की प्रेरणा से सम्बोधन पाकर भक्तजन जिनवाणी के प्रकाशन के लिये विशाल अर्थ राशि प्रदान करते हैं। उन्हीं का सम्बोधन पाकर शांतिवीर नगर महावीरजी में शिव• सागर ग्रन्थमाला से पं. लालारामजी कृत हिन्दी टीका सहित प्रादिपुराण, पं० गजाधरलाल जी कृत टीका सहित हरिवंशपुराण, पं० दौलतरामजी कृत टोका बाला पद्मपुराण और श्री १०५ प्रायिका आदिमतीजी द्वारा रचित विस्तृत हिन्दी टीका सहित कर्मकाण्ड का प्रकाशन हुना है। सम्प्रति, सिद्धांतसार दीपक का प्रकाशन भी उन्हीं का सम्बोधन प्राप्त कर श्रीमान् पूनमचन्दजी गंगवाल, श्रीमान् रामचन्द्रजी कोठारी जयपुर, श्रीमान् माणिकचन्दजी कोटा आदि दातागों के द्वारा प्रदत्त अर्थ राशि से हो रहा है । श्रुतसागरजी महाराज का कहना है कि समाज में सब प्रकार के श्रोता हैं, जो जिस प्रकार का श्रोता है उसके लिये उस प्रकार का ग्रन्थ स्वाध्याय के लिये अल्प मूल्य में मिलना चाहिए । त्रिलोकसार, सिद्धांतसार दीपक और कर्मकाण्ड आदि गहन ग्रन्थ विशिष्ट श्रोताओं के लिये हैं तो पादिपुराण, हरिवंशपुराण, पद्मपुराण तथा धन्यकुमार चरित आदि कथा ग्रन्थ साधारण श्रोताओं के लिये हैं।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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