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________________ षष्ठोऽधिकार : [ १७१ सरः प्रतिनलिनीनां पञ्च विशतिकं ततः । नलिनी प्रतिपमानां पञ्चविंशत्यधिकं शतं ॥६॥ नर्तकीनो प्रतिए चमष्टोत्तरशतं परं । एवं वैभवसंयुक्त गजं शक्रः स्थितोमुदा ।।७।। अब इन्द्र के ऐरावत हाथो का संक्षिप्त वर्णन करते हैं: आभियोग्य देवों का अधिपति नागदत्त नामक वाहन जाति का देव जम्बूद्वीप प्रमाण अर्थात् एक लाख योजन प्रमाण गोल देह की विक्रिया करके इन्द्र का ऐरावत हाथी बनता है। जो शङ्ख, चन्द्र पौर कुन्द पुष्प के समान धवल अलङ्कारों, घण्टा, विकलो. तारिकानों पर जनों) एवं नया कक्षा अर्थात् हाथी के पेट पर बांधने की रस्सो प्रादि से विभूषित, अत्यन्त सुन्दर, विक्रियारूप को धारण करने वाला तथा महा उन्नत होता है । उस हाथी के अनेक वरणों से युक्त रमणीक बत्तीस मुख होते हैं । एक एक मुख में कोमल, मोटे और लम्बे पाठ पाठ दांत होते हैं। ( ३२ मुख x ८ =२५६ दात हुये )। एक एक दांत पर उठती हुई कल्लोलों से रमणीक एक-एक सरोवर होता है । ( २५६ तरोबर हुये)। एक एक सरोवर में एक एक कमलिनी होती है । एक एक कमलिनी पर एक एक दिशा में मणियों की वेदिकानों से अलंकृत एक एक तोरण होता है, प्रत्येक कमलिनी के साथ प्रफुल्लित रहने वाले बत्तीस बत्तीस कमल होते हैं (२५६ x ३२८१६२ कमल होंगे)। एक एक कमल में एक एक योजन पर्यन्त सुगन्ध फैलाने वाले बत्तीस बत्तोस पत्र होते हैं-(८१९२ कमल - ३२=२६२१४४ पत्र हुये)। एक एक पत्र पर दिव्य रूप को धारण करने वाले प्रतिमनोज्ञ बत्तीस नाटक (नाटयशाला) होते हैं (२६२१४४४३२ = ८३८८६०८) और एक एक नाट्यशालाओं में दिव्यरूप को धारण करने वाली बत्तीस बत्तीस अप्सराएँ नृत्य करती हैं ( ८३८८६०८४३२-२६८४३५४५६ अप्सराएँ )। जो अनेक प्रकार की बिक्रिया धारण करके मृदङ्ग प्रादि वादियों द्वारा, नाना प्रकार के चरण विन्यास द्वारा, हाथ रूपी पल्लवों द्वारा और कटितट आदि की लय के द्वारा प्रानन्द पूर्वक नृत्य करती हैं। ये समस्त सत्ताईस करोड़ अप्सराएँ, पाठ महादेवियां और एक लाख बल्लभिकाएँ उस ऐरावत हायी को पीठ पर चढ़ कर उस जन्म महोत्सव में जाते हैं। विशेषार्थ:-विक्रिया धारण करने वाले ऐरावत हाथी के ३२ मुख और प्रत्येक मुख में आठ पाठ दाँत इत्यादि उपर्युक्त क्रम से मानने पर अप्सरामों की कुल संख्या छब्बीस करोड़ चौरासीलाख पतीस हजार चार सौ छप्पन (२६८४३५४५६) होती हैं, किन्तु प्राचार्य इनकी संख्या सत्ताईस करोड़ लिख रहे हैं, तथा अन्य प्राचार्यों के मतानुसार भी अप्सरात्रों की संख्या २७ करोड़ हो है । यथाः इस ऐरावत हाथी के सौ मुख होते हैं । प्रत्येक मुख में पाठ-पाठ दांत ( १००४=८०० } होते हैं । प्रत्येक दांत पर जल से भरे हुये सरोबर (८००) होते हैं । प्रत्येक सरोवरों में पच्चीस-पच्चीस
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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