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________________ दष्ठोऽधिकारः [ १६६ भत्यदेव अपने हाथों में विकसित कमल की कान्ति बाली पद्मध्वजारों से प्रारोपित विद्र ममणि (मूगे) के ऊँचे ऊँचे दण्ड लेकर चलते हैं । षष्ठम कक्ष के भृत्यदेव अपने हाथों में गोक्षीर वर्ण सदृश धवल ध्वजात्रों से युक्त स्वर्शदण्ड लेकर तथा सप्तम कक्षा के भृत्यदेव अपने हाथों में दैदीप्यमान मरिण समूह से रचित दण्ड के अग्रभाग पर स्थित, मोतियों की मालारों से अलंकृत धवल छत्रों को लेकर जाते हैं। इसप्रकार सात प्रनीकों से युक्त, जिमभक्ति में तत्पर भृत्यदेव उत्साह और अपूर्व उद्यम पूर्वक उस महोत्सव में जाते हैं। इन मृत्यदे बों की सात अनीक कक्षानों में से छह कक्षा के मृत्यदेव मात्र ध्वजाएँ लेकर चलते हैं जिनका सर्वयोग बावन करोड़ बान्नवे लाख ( ५२६२००००० ) प्रमाण है, जो इस जन्ममहोत्सव में चलती हुई पवन के वश से हिलने वाली दिव्य ध्वजारों से अत्यन्त शोभायमान होते हैं सप्तम कक्षा के भृत्य श्वेत छत्र लेकर चलते हैं, जिनका प्रमाण ओपन करोड़ छयत्तर लाख ५३७६००००० है । इसप्रकार वृषभ से भृत्यदेव पर्यन्त (४६) उनचास अनीक कक्षानों का एकत्र योग करने पर सात सौ छयालीस करोड़ छयत्तर लाख प्रमाश है । यथाः सात अनोक सम्बन्धी ४६ कक्षानों का एकत्रित प्रमाण वृषभ । रथ घोड़े । हाथी । नर्तक । गन्धवं । भृत्यवर्ग ५४०००.. ८४००... | Y०.... । ४.००४. ! -४००००० ५४०.००० १६८००००० । १६८००००० | १६८००००० १६८००००० ] १६८००००० १६०००००० १६८००००० ३३६००००० | ३३६०००००३३६०००००१ ३३६००००० | ३३६००००० ३३६००००० ३३६००००० | ६७२००००० ६७२००००० ६७२००००० ६७२००००० ६७२-०३०० ६७२००००० ६७२००००० ५ | १३४४०००००,१३४४०००३०] १३४४००००० १३४४०००००१३४४०००००१३४४०००००१३४४०,००० २६८८००००० २६८८०००००२६८८०००००२६८८०००००२१८८०००००२६८००००००/२६८८००००० ७ । ५३७६०००००' ५३७६०००००। ५३७६००००० ५३७६०००००५३७६०००००५३७६०००००५३७६००००० ०६६८०००००१०६६८०००००१०६६८०००००१०६६८००००० १०६६८ । १०६६८ । १०६६८ + -- .०००००००००+ ०००००. -७४६७६००००० कुल प्रमाण हुमा
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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