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________________ षष्ठोऽधिकार: [१६७ मरिणयों से निर्मित, सुन्दर चाकों को धारण करने वाले तथा कमल के सदृश वर्ण बाले रथ हैं. और सप्तम कक्षा में मयूर कष्ठ सदृश वर्ण वाले मणियों के समूह से उत्पन्न किरणों से देदीप्यमान इन्द्र नीलमणि की प्रभा के सदृश वर्ण वाले महारथ जाते हैं। इन राष्ट्र सेनामों से समन्वित, बहुत से देव देवियों से परिपूर्ण, उत्तम चमर, छत्र, ध्वजाएं एवं पुषों की मालाओं से प्रकाशमान, सब रथ कक्षाओं के मध्य में शब्द करते हुये देव वादित्रों से युक्त और आकाश को आच्छादित करते हुये ॐचे एवं विस्तृत रथ जिनेन्द्र भगवान के जन्माभिषेक महोत्सव में इन्द्र के महान् पुण्योदय से आगे आगे जाते हैं। अश्वों की प्रथम कक्षा में क्षीरसमुद्र की तरङ्गों के सदृश तथा श्वेत चापरों से अलंकृत धवल अश्व जाते हैं । हितोय कक्षा में उदित होते हुये सूर्य के वर्ण सदृश एवं चलते हुये उत्तम चामरों से युक्त ( रक्त वर्ण के ) तुरङ्ग होते हैं। तृतीय कक्षा में तपाये हुये स्वर्ण के सदृश ग्छरों से उत्पन्न धूलि से पिञ्जरित अश्व गोरोचन (पीत) वर्ण वाले होते हैं। चतुर्थ कक्षा में मरकत मरिण के सदृश वर्ग वाले एवं शीघ्रगामी अश्व चलते हैं। पञ्चम कक्षा में रत्नों के आभूषणों से विभूषित तथा नीलोत्पल पत्र सदृश वर्ण वाले घोड़े चलते हैं । षष्ठम कक्षा में जपा पुष्प सदृश (रक्त) वर्ण वाले और सातम कक्षा में इन्द्रनील मणि की प्रभा वाले घोड़े होते हैं । इसप्रकार ये सात कक्षाओं से युक्त, अनेक प्रकार के प्राभरणों से विभूषित, अपनी अपनी सेनाओं के प्रागे उत्पन्न होने वाले वादित्रों के शब्दों से अन्तरित, उत्तम रनों के पासनों (पलानों) से युक्त, देवकुमारों द्वारा चलाये जाने वाले दिव्य और उत्तुङ्ग काय घोड़े भगवान् के जन्माभिषेक के महोत्सव में जाते हैं। प्रथम कक्षा की गज सेना में गोक्षीर ( धवल ) वर्ण सदृश और पर्वत के समान उन्नत एवं विस्तृत देह वाले चौरासी लाख हाथी होते हैं । हितीय कक्षा में सूर्य (बाल सूर्य ) के तेज सदृश कान्ति वाले हाथो दुगुने ( एक करोड़ अड़सठ लाख ) होते हैं। तृतोय कक्षा में दूसरी कक्षा से दुगुने और तपाये हुये स्वर्णाभा सदृश हाथो जाते हैं। चतुर्थ कक्षा में इससे भी दुगुने और तपाये हुये स्वर्ण को कान्ति सदृश हाथी होते हैं । पञ्चम कक्षा में चतुर्थ कक्षा से दुगुने और नीलोत्पल प्राभा युक्त हाथी षष्ठम कक्षा में पञ्चम कक्षा से दुगुने तथा जपा पुष्प सदश हाथी और सप्तम कक्षा में अञ्जन गिरि के सदृश कान्ति वाले वेपन करोड़ छय तर लाख हाथी जाते हैं । इन सातों कक्षाओं के हाथियों को संख्या का योग एक सौ छह करोड़ अड़सठ लाख है। इन सात सेनाओं से युक्त, उन्नत दात रूपी मूसलों से सहित, गुड-गुड गरजने वाले, गलते हुये मद से हैं लिप्त अङ्ग जिनके, लटकते हुये रत्नमय घण्टा, किंकिणी एवं पुष्प मालानों से सुशोभित, अनेक प्रकार की ध्वजारों, छत्र, चमर एवं मरिण और स्वर्ण को रस्सियों से अलंकृत, प्रत्येक कक्षा के अन्तरालों में बजने वाले वादित्रों के शब्दों से युक्त, उत्तम देव देवियों की सवारियों से सहित, चलते फिरसे पर्वत के समान उन्नत एवं महादिव्य देह को धारण करने वाले हाथी, इन जिनेन्द्र भगवान के जन्म महोत्सव में सौधर्म इन्द्र के श्रेष्ठ पुण्य क रुल को लोगों को दिखाते हुये ही मानो स्वर्ग से मेरु पर्वत की पोर आते हैं।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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