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________________ १६६ ] सिद्धान्तसार दोपक दिश करते हुये तथा अनेक प्रकार के पटह प्रादि के शब्दों द्वारा दसों दिशात्रों को बहरी करते हुये जिनेन्द्र भगवान् के जन्माभिषेक का उत्सव मनाने के लिये अपूर्ण प्रानन्द एवं धर्मरागरूपीरस से उत्कट अपने-अपने स्थानों से सुमेरु पर्वत की पोर पाते हैं । इस जन्माभिषेक के समय इन्द्रों का प्रमुख देव सौधर्मेन्द्र ऐरावत हाथी पर चढ़कर अपनी तीन परिषदों एवं सात अनीकों से अलंकृत होता हुआ स्वर्ग से मध्य लोक में पाता है । इस सौधमेंद्र की प्रथम अभ्यन्तर परिषद् में दिव्यरूप और दिव्य मुखवाले, आयुध एवं अलंकारों से अलंकृत मारह लाख देव होते हैं। मध्यम परिषद् में चौदह लाख देव और बाह्यपरिषद् में सोलह लाख देव होते हैं। प्राभ्यन्तर, मध्य और बाह्य परिषदों के क्रम से रवि, शशि और यदुप नाम के महत्तर (प्रधान) देव हैं। वृषभ, रथ, तुरंग, गज, नर्तक, गन्धर्ग और मृत्य हैं नाम जिनके ऐसे सात-सात कक्षामों से युक्त सात अनौके सेनाएँ सौधर्मेन्द्र के आगे जन्माभिषेक के समय में महान आडम्बर से युक्त होती हुई चलती हैं। प्रथम कक्षा में शंख एवं कुन्द पुष्प के सदश धवल चौरासी लाख वषभ चलते हैं। द्वितीय कक्षा में जपा पुष्प के सदश वर्ग वाले एक करोड़ अडसठ लाख वृषभ चलते हैं। तृतीय कश्वा में नील कमल के सदृश घर्ग वाले तीन करोड़ छत्तीसलाख वृषभ हैं। चतुर्श कक्षा में मरकत (नील) मरिण की कान्ति सदृश वर्ण बाले छह करोड़ बहत्तर लाख वृषभ हैं। पंचम कक्षा में स्वर्ण सदृश वर्ण वाले तेरह करोड़ चवालोस लाख वृषभ हैं। षष्ठ कक्षा में अञ्जन सदृश वर्ण वाले छन्नीस करोड़ ग्रहासी लाख वृषभ हैं, और सप्तम अनीक में किंशुक (केसु) पुष्प की प्रभा सदृश वर्ण वाले ओपन करोड़ छयसर लाख वृषभ आगे आगे चलते हैं। शब्द करते हुये नाना प्रकार के पटह ग्रादि एवं तूयं ग्रादि से अन्तरित अर्थात् इन सेनात्रों के मध्य मध्य में इन बाजों से युक्त, घण्टा, किंकणो, उतम चॅवर एवं मरिणमय कुसुममालाओं से अलंकृत, रत्नमय कोमल आसन (पलान) से युक्त, देवकुमारों द्वारा चलाये जाने वाले और दिव्य रूप को धारण करने वाले समकक्षामों से समन्वित समस्त वृषभ अनोकों को संख्या एक गौ छह करोड़ अडसर लाख है जो इस जन्माभिषेक महोत्सव में जाती है । जिस प्रकार इन सात वृषभ धनीकों को दूनी दूनी संध्या का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार शेष रथ प्रादि छह अनीकों की संख्या जानना चाहिये। प्रयम कक्षा में हिम को प्राभा के सदृश धवल छत्रों से विभूषित धवल रथ चलते हैं। द्वितीय कक्षा में वैडूर्य मरिण से निर्मित, चार चाकों से विराजमान और मन्दार पुष्पों के सदृश वर्ण बाले महारथ गमन करते हैं । तृतीय कक्षा में स्वर्णमयछत्र, चामर और ध्वज समूहों से समन्वित तथा तराये हुये स्वर्ण से निर्मित रथ जाते हैं। चतुर्थ कक्षा में मरकत मरिणयों से निर्मित बहुत चाकों से उत्पन्न हुये शब्दों से गम्भीर और दुर्वांकुर वर्ण सदृश रथ होते हैं । पञ्चम कक्षा में कर्केतन मणियों से निर्मित बहुत चाकों से उत्पन्न शब्दों से युक्त तथा नीलोत्पलपत्रों के सदृश रथ हैं। पष्ठम कक्षामें पद्मराग
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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