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इसी तरह सद्भाषितावलि उनके सर्वागज्ञान का प्रतीक है । जिसमें सकलकीर्ति ने जगत के प्राणियों को सुन्दर शिक्षाएं भी प्रदान की हैं, जिससे वे अपना आत्म-कल्याण करने की थोर अग्रसर हो सके । वास्तव में वे सभी विषयों के पारगामी विद्वान थे। ऐसे सन्त विद्वान् को पाकर कौन देश गौरवान्वित नहीं होगा ?
राजस्थानी रचनाएं -
सकलकोति ने हिन्दी में बहुत ही कम रचना की है। प्रमुख कारण संभवतः इनका संस्कृत भाषा की और अत्यधिक प्रेम था। इसके अतिरिक्त जो भी इनकी हिन्दी रचनाएं मिली हैं वे सभी लघु रचनाएं हैं जो केवल श्रध्ययन को दृष्टि से ही उल्लेखनीय कही जा सकती हैं। सकलData का अधिकांश जीवन राजस्थान में व्यतीत हुआ था। इनकी रचनात्रों में राजस्थानी भाषा की स्पष्ट छाप दिखलाई देती है ।
इस प्रकार भट्टारक सकलकीर्ति ने संस्कृत भाषा में ३० ग्रन्थों की रचना करके मां भारती की पूर्व सेवा की और देश में संस्कृत के पठन-पाठन का जबरदस्त प्रचार किया ।
भाचार्य सकलकीति विरचित संस्कृत ग्रन्थावली में अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ अब भी अप्रकाशित हैं और मुलाचार प्रदीप जैसे कुछ महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित होनेपर भी इस समय अनुपलब्ध हो रहे हैं। अच्छा हो शांतिवीर प्रत्थमाला महावीरजी या अन्य कोई प्रकाशन संस्था इन सब ग्रंथों को सुसंपादित कराकर हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित कराने को योजना बनावे । भाषाकी सरलता और प्रतिपाद्य विषयों की उपयोगिता को देखते हुए आशा है कि इनके ग्रंथ लोकप्रिय सिद्ध होंगे ।
सिद्धांतसार- दीपक का यह सटीक संस्करण-
त्रिलोकसार की टीका करने के बाद पूज्य श्रार्थिका श्री १०५ विशुद्धमतिजी ने मुझसे पूछा कि अब मुझे बतलाइये किस ग्रन्थ पर काम करू ? क्योंकि टीका करने में स्वाध्याय और व्यान दोनों की सिद्धि होती है । विचार-विमर्श के बाद स्थिर हुआ कि सिद्धान्तसार दीपक' की टीका की जाय । इसका विषय त्रिलोकसार से मिलता जुलता है तथा जन साधारण के स्वाध्याय के योग्य है । फलतः हस्तलिखित प्रतियां एकत्र कर उनके पाठ भेद लेना शुरू किया गया। सवाई माधवपुर के चातुर्मास में इसके पाठभेद लेने का कार्य सम्पन्न हुआ था उसमें श्री पं० जगन्मोहनलालजी और मैंने भी सहयोग किया था। टीका के लिये जो मूल प्रति चुनी गई थी वह १७८९ विक्रम सम्वत् की लिखी हुई थी। जैसा कि उसकी अन्तिम प्रशस्ति से स्पष्ट है ।
ग्रन्थ पर्यायन्त्र समेत ४५१६, सम्वत् १७५ वर्षे श्राषाढ मासे कृष्णपक्षे तिथौ चतुर्दशी शनिवासरे, लिखितं मानमहात्मा चाटसु मध्ये श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये