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संस्कृत की रचनाएं -
१. मूलाचार प्रदीप २. प्रश्नोत्तरोपासकाचार ३. प्रादिपुराण ४. उत्तरपुराण ४. शांतिनाथ चरित्र ६. वर्द्धमान चरित्र ७. मल्लिनाथ चरित्र ८. यशोधर चरित्र - धन्यकुमार चरित्र १०सुकुमाल चरित्र ११. सुदर्शन चरित्र १२. सद्भाषितावलि १३. पार्श्वनाथ चरित्र १४. व्रतकथा कोष १५. नेमिजिन चरित्र १६. कर्मविपाक १७. तत्वार्थसार दीपक १८ सिद्धान्तसार दीपक १६. श्रागमसायं २०. परमात्मराज - स्तोत्र २१. सारचतुर्विंशतिका २२ श्रीपाल चरित्र २३. जम्बूस्वामी चरित्र २४. द्वादशानुप्रेक्षा ।
पूजा ग्रन्थ
२५. श्रष्टाह्निका पूजा २६. सोलहकारण पूजा २७ गए घरवलय पूजा |
राजस्थानी कृतियां --
१. आराधना प्रतिबोधसार २. नेमीश्वर गीत ३ मुक्तावलि गीत ४. रामोकार फल गीत ५. सोलहकारण रास ६. सारसिखामणि रास ७. शांतिनाथ फागु ।
उक्त कृतियों के अतिरिक्त अभी और भी रचनाएं हो सकती जिनकी श्रभी खोज होना बाकी है। भट्टारक सकलकीर्ति की संस्कृत भाषा के समान राजस्थानी भाषा में भी कोई बड़ी रचना मिलनी चाहिये, क्योंकि इनके प्रमुख शिष्य ब्र० जिनदास ने इन्हीं की प्रेरणा एवं उपदेशसे राजस्थानी भाषा में ५० से भी अधिक रचनाएं निबद्ध की हैं ।
उक्त संस्कृत कृतियों के अतिरिक्त पंचपरमेष्ठि पूजा, द्वादशानुप्रक्षा एवं सारचतुर्विंशतिका आदि और भी कृतियां हैं। जो राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होती हैं । ये सभी कृतियां जैन समाज में लोकप्रिय रही हैं तथा उनका पठन-पाठन भी खूब रहा है ।
भट्टारक सकलकीति की उक्त संस्कृत रचनाओं में कवि का पाण्डित्य स्पष्ट रूप से झलकता है । उनके काव्यों में उसी तरह की शैली, अलंकार रस एवं छन्दों की परियोजना उपलब्ध होती है जो अन्य भारतीय संस्कृत काव्यों में मिलती है । उनके चरित काव्यों को पढ़ने से अच्छा रसास्वादन मिलता है । चरित काव्यों के नायक बैसठशलाका के लोकोत्तर महापुरुष हैं जो प्रतिशय पुण्यवान् हैं, जिनका सम्पूर्ण जीवन प्रत्यधिक पावन है । सभी काव्य शांतरस पर्यवसानी हैं ।
काव्य ज्ञान के समान भट्टारक सकलकीर्ति जैन सिद्धान्त के महान् बेत्ता थे । उनका मूलाचार प्रदीप, प्रश्नोत्तर श्रावकाचार सिद्धान्तसार- दीपक एवं तत्त्वार्थसार दीपक तथा कर्मविपाक जैसी रचनाएं उनके अगाध ज्ञानके परिचायक हैं। इसमें जैन सिद्धान्त, श्राचार-शास्त्र एवं तत्त्वचर्चा के उन गूढ़ रहस्यों का निचोड़ है जो एक महान् विद्वान् अपनी रचनाओं में भर सकता है ।