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________________ १४६ ] सिद्धान्तसार दीपक पुरं वैराधनामाथरत्नाकराह्वयम् पुरम् । ततो रत्नपुरम् चेमानि पुराणि खगामिनाम् ॥४॥ पोष्टः स्युरुत्तरश्रेण्या शाश्वतानि शुभानि च । पश्चिमां दिशमारभ्य स्वःपुरा भान्यनुक्रमात् ॥६५॥ पुराणिवक्षिणश्रेण्यां'प्रागुक्तानि भवन्ति । पञ्चाशत् पूर्वदिग्भागमावि कृत्वा क्रमेण च ॥८६॥ अर्थ-( भरतरावत सम्बन्धी विजयाओं की पूर्व पश्चिम लम्बाई में ) दक्षिग श्रेणी पर विद्याघरों के रमणीक ५० नगर और उत्तर श्रेणी पर ६० नगर हैं । पूर्व दिशा से प्रारम्भ कर दक्षिण श्रेणीगत ५० नगरों के नाम क्रमश: इसप्रकार हैं: - १ किलाम, २ किन्नरगति, ३ नरगीत, ४ बहुकेतपुर, ५ पुण्डरीक, ६ सिंहध्वज, ७ श्वेतत्रज, ८ गरुडध्वज, ६ श्रीप्रभ, १० श्रीधर, ११ लोहार्गल, १२ अरिजय, १३ वैरागल, ५४ वैराख्य, १५ वियतोजपुर, १६ जय, १७ शकट, १८ चतुर्वक्र, १६ बहुमुख, २० अरजा, २१ बिरजा, २२ रथ नूपुर, २३ मेखलाग्रपुर, २४ श्रेमवयं, २५ अपराजित, २६ कामपुर, २७ वियच्चर (गगनचर), २८ विजयचर, २६ शक्तपुर, ३० सञ्जयन्त, ३१ जयन्तपुर, ३२ विजय, ३३ वैजयन्त, ३४ क्षेमकर, ३५ चन्द्राभ ३६ सूर्याभा, ३७ पुरोत्तम, ३८ चित्रकूट, ३६ महाकूट, ४० हैमट, ४१ त्रिकूट, ४२ मेघकूट, ४३ विचित्रकूट, ४४ वैश्रवणकूट, ४५ सूर्यप्रभ, ४६ चन्द्रप्रभ, ४७ नित्यप्रद्योत, ४८ नित्याभा, ४६ विमुख और अन्तिम ५० नित्यवाहनी नाम वाले ५० नगर दक्षिण श्रेणी पर हैं। उत्तर दिशा में पश्चिम श्रेणी से प्रारम्भ कर क्रमशः १ वसुपुर, २ अर्जुन, ३ अरुण, ४ कैलाश, ५ वाहरगपुर, ६ विद्युत्प्रभ, ७ किलिकिलित्पुर, ८ चूड़ामणि, ६ शशिप्रभ, १० विशालपुर, ११ पुष्पचूल, १२ हंसगर्भपुर, १३ बलाहकपुर, १४ शिबङ्कर, १५ श्री सोधपुर, १६ चमरपुर, १७ शिव मन्दिर, १८ वसुमत्ता, १६ वसुमति, २० सिद्धार्थनगरी, २१ शत्रुजयपुरी, २२ केतुमाल, २३ इन्द्रकान्तपुर. २४ गगननन्दिनी, २५ अशोकापुर, २६ विशोकापुर, २७ वोतशोकापुरी, २८ अलकापुरी, २६ तिलकापुरो, ३० अपूर्वतिलकापुरी, ३१ मन्दरपुरी, ३२ कुमुदपुर, ३३ कुन्दपुर, ३४ गगनवल्लभ, ३५ दिन्यतिलक, ३६ पृथ्वी तिलक, ३७ गन्धर्वपुर, ३५ मुक्ताहारपुर, ३६ नैमिषपुर, ४० अग्निजालपुर, ४१ महाजालपुर, ४२ श्रीनिकेतनपुर, ४३ जयावहपुर, ४४ श्रीवासपुर, ४५ मरिगवन्नपुर, ४६ भद्राश्वपुर, ४७ धनञ्जयपुर, ४८ गोक्षीरफेनपुर, ४६ अक्षोभपुर, ५० शैलशेखरपुर, ५१ पृथ्वीधरपुर, ५२ दुर्गपुर, ५३ दुर्धरनगर, ५४ सुदर्शननगर, ५५ महेन्द्रपुर, ५६ विजयपुर, ५७ सुगन्धिनीनगर, ५८ वैराध ४. शाश्वतानि अ. ज.
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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