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________________ [१३१ पञ्चमोऽधिकारः शतयोजनदीर्घधारा कुण्डे निपत्य तद्दक्षिणद्वारेण चलित्वा हैरण्यवतक्षेत्र मध्ये गत्वा तत्रस्थ नाभिगिरि गव्यूतिद्वयेन मुक्त्वा तस्यार्थ प्रदक्षिणां कृत्वा पूर्व समुद्रं गता। रदिपालमियत नागरीक हद पोरर द्वारेण निर्गस्य रूप्यकलाह्वया सरित् द्विशतयोजनोसेघा गिरिः प्रणाल्या कुण्डेऽवतीर्य-तदुत्तर द्वारेण निर्गत्य हैरण्यबताख्य जघन्यभोगभूमिक्षेत्रमध्ये गत्वा तत्रस्थ नाभिगिरि योजनार्धन विहाय तस्याप्रदक्षिणां विधाय' पश्चिमाब्धि प्रविष्टा । अस्मिन् हरण्यवतक्षेत्र प्रागक्ता दहनदीनिर्गमद्वाराद्याः सरित्प्रवेशाब्धिद्वारान्ताः सर्वे व्यासादिभिः हैमवतक्षेत्रसादृश्या ज्ञातव्याः। शिखरिशलस्थपुर हरीकह्लदस्य पूर्व हारेरा निर्गत्य पञ्चशतयोजनानि गत्वा योजनार्धन रक्ताटं विहायदक्षिणाभिमुनी भूग्य किञ्चिदधिकार्धक्रोशाग्रपञ्चशतयोजनानि गत्वाञ्चल प्रणालिकया कुण्ड मध्ये पतित्वा तदुनर द्वारेण निर्गत्य विजया गुहा देहली तले प्रविश्योत्तररावत क्षेत्रार्घभूभागं गत्वा प्रारमुखीभूय रक्तानदी स्वप्रवेशद्वारेण पूर्व समुद्रं गता । तस्येव पुण्डरीकद्रहस्य पश्चिमद्वारेण निर्गत्य रक्तोदा सरित् पञ्चशतयोजनानि गत्वा क्रोश द्वयेन रक्तोदा कुटं त्यक्त्वा गिरेस्तटमागत्य तत्प्रणाल्याधोभूस्थ कुण्डे निपत्य तदुत्तरद्वारेण चलित्वा विजया गुहाद्वार देहलोतले प्रविश्योत्तरंरावतार्धभूतलं गत्वा पश्चिमाभिमुखी भूयापर सागरं प्रविष्टा । अनयोनंद्योह्रद निगमद्वारव्यासादिप्रणालो बिस्तरादिनदीपर्वतान्तरधारोच्छितिविस्तृतिकुण्ड द्वीपादि गृहादिसमुद्र प्रवेशद्वार विष्कम्भादयः समस्ताः गङ्गासिन्धुनदी समानाः ज्ञातव्या । सिन्धु नदो का सविस्तार वर्णनः पद्मसरोवर की पश्चिम दिशा में दो कोस नींव वाला, ६ योजन चौड़ा और ६ योजन १६ कोस ऊँचा जिन बिम्ब एवं दिक्कन्याघों के प्रावासों (भवनों) से अलंकृत एक तोरणद्वार है । अर्ध कोस गहरी और ६१ योजन चौड़ो सिन्धुनदी उस तोरण द्वार से निकल कर हिमवान् पर्वत के ऊपर पश्चिम दिशा में अर्थात् सिन्धु कूट के सम्मुख सीधी ५०० योजन जाकर सिन्धु कूट को दो कोस (यो०) दूर से ही छोड़तो हुई दक्षिणाभिमुख होती है, और साधिक अर्ध कोस से अधिक ५२३ योजन आगे जाकर हिमवान् पर्वत के तट पर स्थित ६ योजन चौड़ो, दो कोस लम्बी और दो कोस मोटी वनमय प्रणाली से (पर्वत के तट से) भरत भूमि पर गिरती है। वहाँ ६२३ योजन चौड़ा और दश योजन गहरा, रत्तवेदी से वेष्टित तया तोरणद्वार मादि से अलंकृत एक शाश्वत कुण्ड है । उस कुण्ड के मध्य में जल से दो कोस ऊँचा और पाठ योजन चौड़ा एक सलद नाम का द्वीप (टापू) है। उस द्वीप के मध्य में दश योजन ऊँचा, मल में चार योजन चौड़ा, मध्य में दो योजन और शिखर पर
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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