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________________ ११४ ] सिद्धान्तसार दीपक उपपाद (जन्म) गृह, शुभ अभिषेक गृह प्रकाशमान मण्डनगृह, उत्कृष्ट सभास्थान शोभनीक क्रीड़ागृह और नाना प्रकार के नाटकगृह आदि होते हैं । १०६ - १०८ ।। ये पद्य, पद्मभवन एवं जिनमन्दिर यादि न तो वनस्पतिकाय हैं और न किन्हीं व्यन्तर देवों के द्वारा रचित हैं, किन्तु ये सभी पृथिवी के विकार स्वरूप हैं । अर्थात् पृथ्वीका और प्रकृत्रिम हैं |१०|| इस प्रकार सम्पूर्ण कमलों के ऊपर नाना प्रकार के तोरा द्वारों आदि से युक्त, मरिणमय श्रीर उन्नत उत्तम गृह हैं ॥११०॥ अब सात प्रकारकी धनीकों के नाम कहते हैं: - गजा अश्वारयातुंगा वृषागन्धवं निर्जराः । नर्त्तक्यो भूत्यपादातयोऽमुनिप्रस्फुरन्ति च ॥ १११ ॥ सप्तानीकानि युक्तानि कक्षाभिः सप्तसप्तभिः । प्रत्येकं श्रीगृहद्वारे मूत्येवं श्रधादियोषिताम् ॥ ११२ ॥ अर्थ :- श्रीदेवी के गृह द्वार पर गज, अश्व, ऊंचे ऊंचे रथ, बैल, गन्धर्वदेव, नृत्यकी और दास अर्थात् पदातिये सात-सात कक्षाओं से युक्त सप्त सेनाएँ शोभायमान होती हैं, इसी प्रकार ह्री आदि प्रत्येक देवकुमारियों के भी जानना चाहिये ।।१११-११२।० अब प्रत्येक कक्षा की संख्या का प्रथमे या गजानीके गजसंख्या च सा ततः । द्वितीये द्विगुरगाव सप्तसु द्विगुणोत्तराः ॥११३॥ तयान्याश्वाद्यनोकानां गणनाश्वादिसंख्यया । प्रत्येकं सप्तकक्षासु द्विगुरणा द्विगुणा मता ।। ११४।। धारण करते हैं: - अर्थः- गज अनीक की प्रथम कक्षा में गजों की जो संख्या है द्वितीय कक्षा में वह संख्या दुगुरणी है । इस प्रकार गज अनीक की सालों कक्षाओं में क्रम से दुगुणी दुगुगो संख्या है। इसी प्रकार श्रश्व आदि सातों अनीकों को प्रथम कक्षा की प्रव आदि को संस्था से द्वितीय कक्षा की अश्व श्रादि की संख्या उत्तरोत्तर दुगुणी मानी गई है ।। ११३-११४।। विशेषार्थ::- गज, अश्व आदि सात अनीकें ( सेनाएँ ) हैं । प्रत्येक सेना में सात सात कक्ष हैं । प्रथम कक्ष के हाथी, घोड़े, रथ आदि की संख्या ( त्रिलोकसार गा० ५७४ को टोकानुसार ) सामानिक देवों की संख्या के प्रमाण (४०००) मानी गई है, भागे श्रागे की कक्षाओं में यह संख्या
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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