SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १०३ चतुर्थाधिकार अब कूटों के विस्तार प्रादि का वर्णन करते हैं : पर्वतस्य चतुर्थांशः कूटानामुत्यो भवेत् । तत्समो विस्तरो मले मलाचं शिखरे तथा ॥७३॥ मलमस्तकयोसियोरेकन्त्री कृतस्य च । अध मध्येऽस्ति विष्कम्भोऽत्रास्य व विस्तरं अणु ॥७४॥ अर्थः-सर्व बाटों की ऊँचाई अपने अपने पर्वतों की ऊँचाई का चतुर्थ भाग है । मूल में अर्थात् भू व्यास का प्रमाण भी ऊँचाई के प्रमाण सरश ही है । शिखर पर अर्थात् मुखव्यास, भून्यास के अर्ध भाग प्रमाण है और मूल एवं मस्तक ( भूठयास+मुखव्यास) के विस्तार को जोड़ कर आधा करने पर कूट के मध्यभाग के विस्तार का प्रमाण प्राप्त होता है । इसोको विस्तार पूर्वक कहते हैं, सुनो ! ।।७३-७४। हिमच्छिखरिणोः कूटानामुत्सेधः पञ्चविंशतियोजनानि । मूले विस्तारः पञ्चविंशतियोजनानि मध्ये च त्रिक्रोशाधिकाष्टादशयोजनानि शिखरे च सार्घद्वादशयोजनानि । महाहिमवद्र क्मिणोः कूटानामुदयो योजनानि पञ्चाशत् । मूले व्यासश्च पञ्चाशत् । मध्ये साधंसप्तत्रिंशद्योजनानि । मस्तके पञ्चविंशतिश्च । निषधनील यो: कूटानामुन्नतिर्योजनानां शतं स्यात् । मूले विस्तृतिश्च शतं भवेत् । मध्ये च पञ्चसप्ततिः शिखरे पञ्चाशदेव । अर्थः-हिमवन् और शिनरिन् कुलाचलों पर स्थित कूटों की ऊँचाई २५ योजन मूल का विस्तार २५ योजन, मध्यविस्तार १५३ योजन और शिखर पर अर्थात् मुखव्यास १२३ योजन प्रमाण है। महाहिमवन और रुक्मो पर्व तस्य कूटों की ऊँचाई ५० योजन, मूल में विस्तार ५० योजन, मध्यविस्तार ३७३ योजन और शिखर पर २५ योजन विस्तार है। इसो प्रकार निषध और नील पर्वतस्थ कूटी की ऊँचाई १०० योजन, मूल में विस्तार १०० योजन, मध्यविस्तार ७५ योजन पौर शिखर का विस्तार ५० योजन प्रमाण है। विशेषार्थ:-(श्लोक ७३-७४ से सम्बन्धित) कूटों को ऊँचाई अपने अपने पर्वतों का चतुर्थाश कहा है । जैसे हिमवन् पर्वत १०० योजन ऊँचा है अतः इसके ऊपर स्थित कूटों की ऊंचाई (2) =२५ योजन होगी । जमीन पर चौड़ाई २५ योजन, ऊपर को चौड़ाई भूव्यास का अधंभाग (२५)= १२३ योजन होगी और मध्य विस्तार, मूलमस्तक की चौड़ाई के योग का अर्थ भाग अर्थात् २५ + १२३ --३७९२ = १५० योजन होगा । इसो प्रकार प्रत्यत्र जानना । यथाः
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy