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________________ ८८ ] सिद्धान्तसार दोपक हजार करोड़ योजन लवण समुद्र का बादर क्षेत्रफल हुआ, और दूसरी जगह स्थापित ६ ला ला का वर्ग करने पर ६ ला ला - ६ ला ला हुये । इनको दश से गुणित करने पर ६ ला ला ४६ ला लाx १० अर्थात् ३६ कोड़ाकोड़ी करोड़ योजन प्राप्त हुये । इनका वर्गमूल निकालने पर १८९७३६६५६६१० योजन अर्थात् अठारह हजार नौ सौ तिहत्तर करोड़ छयासठ लाख, उनसठ हजार छह सौ दश योजन लवणसमुद्र के सूक्ष्मक्षेत्रफल का प्रमाण प्राप्त होता है। अस्थार्थः प्रोच्यतेः-जम्बूद्वीपस्य स्यूलं वृत्तक्षेत्रफलं सप्तशतपञ्चाशत् कोटि योजनानि । सूक्ष्म च सप्तशतनवतिकोटिषट्पञ्चाशल्लक्षचतुर्नवतिसहस्र कशतपञ्चाशद्योजनानि । पादाधिकक्रोशश्च । इसी प्रथं को कहते हैं.--जम्बूद्वीप के स्थुनक्षेत्रफल का प्रमाण ३ ला०४१ वा = सात सौ पचास करोड़ अर्थात् सात अरब पचास करोड़ वर्ग योजन है, और सूक्ष्म क्षेत्रफल का प्रमाण सूक्ष्मपरिधि ४१ ला० " -७६०५६६४१५० योजन, १ कोस, १५१५ धनुष, २ हाथ और १२ अंगुल है। जम्बूद्वीपस्थ क्षेत्र एवं कुलाचलों के नाम: अथ जम्बूमतिम तने महारो सुदर्शन । दक्षिणं भागमारभ्येमानि क्षेत्राणि सप्तवं ॥२२॥ प्रादिमं भारतं क्षेत्र ततो हमवताह्वयम् । हरिसंज्ञं विवेहाल्यं जम्बूद्वीपे च रम्यकम् ॥२३॥ हरण्यवसनामार्थ-रावतं क्षेत्रमन्तिमम् । सप्ततानि सुवर्षाण्यन्तरितानि कलाचलः ॥२४॥ प्रथमो हिमवच्छलस्ततोमहाहिमाचलः । निषधः पर्वतो नीलो रुक्मी च शिखरीति षट् ॥२५॥ अर्थ:-जम्बूद्वीप के मध्य भागमें सुदर्शन नाम का महामेरु है, इस सुदर्शन मेरु के दक्षिणभाग से प्रारम्भ कर सात क्षेत्र हैं ।। सर्व प्रथम भरत क्षेत्र, (२) हैमवत, (३) हरिक्षेत्र, (४) विदेह, (५) रम्यकक्षेत्र, (६) हैरण्यवत क्षेत्र और अन्तिम (७) ऐरावत नाम का क्षेत्र है । इन सातों क्षेत्रों को अन्तरित करने बाने छह कुलाचल पर्वत हैं, जिसमें प्रथमादि कुलाचलों के नाम हिमवन्, (२) महाहिमवन्, (३) निषध, (४) नील पर्वत, (५) रुक्मो और (६) गिरिन् हैं ॥२२-२५।। अब कुलाचलों का वर्ण कहते हैं:
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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