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________________ चतुर्थाधिकार अर्थ:-सम्पूर्ण द्वीप समुद्रों के मध्यभाग में जम्बूद्वीप नाम का प्रथम द्वीप है, जो गोल है, एक लाख योजन व्यास वाला और जम्बू वृक्ष से अलंकृत है । जम्बूद्वीप से दूने विस्तार वाला लवण समुद्र है, जो शाश्वत है और लवण समुद्र से भी दूने विस्तार वाला घातको खण्ड है । इसो प्रकार अन्तिम स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त सर्व द्वीप समुद्र दूने दुने विस्तार वाले, अकृत्रिम और क्षय से रहित हैं ॥१२-१४।। अब सूची व्यास का लक्षण कहते हैं: द्वीपाब्धीनां हि संलग्ना गणनायोजनश्च या । ऋज्वोतव यान्ता सा सूची बुनिगद्यते ॥१५॥ अर्थः-योजनों द्वारा द्वीप या समुद्र के मध्य के माप का अथवा द्वीप या समुद्र के एक तट से दूसरे तट पर्यन्त तक के सोधे माप का जो प्रमाण है वह विद्वानों के द्वारा सूची नाम से कहा गया है ॥१५॥ विशेषार्थ:-सीधी रेखा द्वारा द्वीप समुद्र या समुद्र के एक तट से दूसरे तट पर्यन्त तक जो माप किया जाता है, उसे सूची कहते हैं ! अढ़ाई द्वीप पर्यन्त के द्वीप समुद्रों की सूची का प्रमाण कहते हैं: योजनानां च लक्षक, सूचीद्वीपादिमस्य वै । लवरणाब्धेभवेत्पञ्च, लक्षयोजनसम्मिता ॥१६॥ सूची च धातकोखण्ड-स्य लक्षारिणत्रयोदश । योजनानां तथैकोनत्रिंशत्कालोदधेस्ततः ॥१७॥ सुची स्यात्पञ्चचत्वारि-शल्लक्षयोजनप्रमा। पुष्करार्थस्यसाज्ञेया-न्येषामेवं श्रुते बुधः ॥१८॥ अर्थ--प्रागम में जम्बुद्वीप के सूची व्यास का प्रमाण एकलाख योजन, लवण समुद्र के सूची व्यास का प्रमाण पांच लाख योजन, धातकी खण्ड के तेरह लाख योजन, कालोदधि समुद्र के उन्तीस लाख योजन और पुष्कराध द्वीप के सूची व्यास का प्रमाण गणधरा दि ज्ञानियों के द्वारा ४५ लाख योजन कहा गया है ॥१६-१८।। विशेषार्थ:-अभ्यन्तर सूची, मध्य सूची और बाह्य सूची के भेद से सूची व्यास तीन प्रकार का होता है, किन्तु यहाँ केवल बाह्य सूची व्यास का ही प्रमाण दर्शाया गया है ।
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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