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________________ ७८ ] सिद्धान्तसार दोपक ___ कुना, बिल्ली, गधा, ऊँट और सर्प आदि जानवरों के मरे हुये शारीरों में जो दुर्गन्ध माती है, उससे भी कहीं अधिक, दुःसह और घृणास्पद दुर्गन्ध उन नारको जीवों के शरीरों में पाती है ।।११२॥ करीत और गोखरू प्रादि पदार्थों में जैसा दुःस्पर्श होता है, वैसा ही स्पर्ध उन नारको जीवों के शरीरों में होता है ।।११३॥ मना विकिगः वा वा--. अपृथग्विक्रियास्स्येषां परपीड़ाविधायिनी । निन्धाशुभतराङ्ग भ्यः स्ववधिषुरितोदयात् ॥११४॥ अर्थः-उन नारकी जीवों के पाप कर्म के उदय से अपृथक् विक्रिया होती है और पर पीड़ा का सम्पादन करने वाला, निन्ध कुअवधिज्ञान प्रशुभतर प्रङ्गों से उत्पन्न होता है ।।११४।। उपसंहार : इत्याग्रन्यजगन्निध-मनिष्ट दुःखकारणम् । यदव्यं तत्समस्तं स्यात्, नारकाङ्गषु पिण्डितम् ॥११५।। किमत्र बहुनोक्तन, विविधा दुःखसन्ततीः । अधोषः सप्तपृथ्वीष्व-संख्यातगुण धिता ॥११६॥ महत्तोश्च निरौपम्या मुक्त्वा केवलिनं जिनम् । नान्यो वर्णयितुं शक्तो, मन्येऽहमिति निश्चितम् ॥११७।। अर्थ:---इस प्रकार और भी जो अन्य द्रव्य जगत् निन्ध, अनिष्ट और दु.ख कारक हैं, वे सब नारकियों के शरीरों में एकत्रित होते हैं। यहां अधिक कहने से क्या ? नाना प्रकार के दुःखोंको परम्परा नीचे नीचे सातों नरकों में असंख्यात गुण, असंख्यात गुण वृद्धि को लिये हुये हैं । निश्चय से मैं ऐसा मानता है कि केबली और जिन के द्वारा कही हुई उस महान् और उपमा रहित वेदना का वर्णन करने के लिये अन्य कोई समर्थ नहीं है ।। ११५-११७ ।। पापाचारी जीवों को शिक्षा : एतन्नरकदुःखादि भीरूणां सुखकांक्षिणाम् । पापारि सर्वथा हत्वा कार्यों धर्मः प्रयत्नतः ॥११॥
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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