SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय अधिकार बनचञ्चुपुटाः क्रूराः पक्षिणोऽतिभयङ्कराः । उत्पतन्ति बनेश्वत्र मारकाङ्गादिभक्षकाः ॥१२॥ अर्थः-नरकों में पर्वतों की भयङ्कर गुफाएं हैं, जो सदा नागों, सिंहों और व्याघ्र आदि मांसभक्षी एवं दूर परिणामी पशुओं से व्याप्त रहती हैं, तथा वहाँ के वनों में वज्र के सदृश कठोर चोंच माले दुष्ट और भगक पक्षी करते रहते हैं जो नारकियों के शरीर का भक्षरण करके उन्हें दुःख पहुँचाते हैं ।।११-१२।। विशेषः-नारको जीवों के वैक्रियक शरीर होता है जो सप्तधातुओं से रहित होता है और अपृथक् विक्रिया के प्रभाव से नारकी जीव स्वयं पशु पक्षियों का रूप धारण कर लेते हैं अतः वहाँ मांस भक्षण आदि की मात्र क्रिया ही होती है अर्थात् उस प्रकार की क्रियानों के द्वारा वे एक दूसरों को दुःख देते हैं 1 यथार्थ में मांस भक्षण आदि नहीं करते। संवेग उत्पादक अन्य भयङ्कर स्वरूप का वर्णन :-- करपत्रसमातीय कर्कशाङ्गाः कुरूपिणः । कुत्सिता हुण्डसंस्थाना रक्तनेत्र भयानकाः ॥१३॥ रौद्ररूपाश्च दुःप्रेक्षा दुःखदानक पण्डिताः । विकरालमुखाः करा रौनध्यानपरायणा: ॥१४॥ प्रचण्डा कालरूपाढपा-स्तीबरोषाः कषायणः । निरंया नारका निन्द्या निन्धकर्मकरा: खलाः॥१|| संख्याप्तिगा वसन्त्येषु, नपुसकाः कलिप्रियाः । विश्वदुःखाब्धि मध्यस्था-निकारणरणोद्धता ॥१६॥ च्याघ्रसिंहादिरूपाय नाना प्रहरणादिभिः । स्वेच्छया विक्रियन्ते ते, रणायविक्रियांगताः ॥१७॥ विभङ्गावधि कुज्ञानं, प्राग्वैरभवसूचकम् । सहजं नारकाणां स्या-स्थान्येषां कुखिकारणम् ॥१८॥ अर्थ:-नरक भूमियों में जो नारकी जोब रहते हैं, उनके शरीर असिपत्र के सदृश प्रत्यन्त कठोर और तीक्ष्ण होते हैं। उनका रूप ग्लानि उत्पादक, रौद्र, कुत्सित और दुष्प्रेक्ष्य (अदर्शनीय) होता है । भयानक और लाल लाल नेत्रों वाले उन जीवों का संस्थान हुण्डक, मुख विकराल और परिणाम प्रति रोद्र एवं क्रूर होता है । वे एक दूसरे को दुःख देने में अत्यन्त चतुर होते हैं । प्रचण्ड काल
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy