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उत्कालका गांव के निकट (विख्यातमयणवल्लोग्राम) प्रसिद्ध माण वल्ली नामक गाँव में (विशेषरूपेण) विशेष रूप से (श्रुत्वा) सुनकर (बप्पदेव गुरुः) बप्पदेव गुरु ने (तयोः पावें) उन दोनों मुनिराजों के निकट (तम् अशेष) उस सिद्धान्त को पूर्णरीति से जानकर (महाबन्धं अपनीय) महाबन्ध को छोड़कर (षट्रखण्डच्छेपञ्चखण्डे) षटखण्डागम के शेष पाँच खण्डों पर (व्याख्याप्रज्ञप्निं ततः षष्ठ खण्ड संक्षिप्य) व्याख्या प्रज्ञप्ति नामक टीका तथा छठे खण्ड को संक्षिप्त कर (षष्णां खण्डानां निष्पन्नानां) छहों खण्डों की व्याख्या निष्पन्न होने के उपरान्त (कषायाख्य प्राभृतकस्य) कषाय नामक प्राभृत की (प्राकृतभाषारूपां) प्राकृत भाषामय (षष्ठिसहस्रग्रन्थप्रमाण युताम्) साठ हजार गाथा प्रमाण (पुरातनव्याख्या सम्यक् व्यलिखत) पुरातन व्याख्यान को पूर्वाचार्यों के क्रम को आगे बढ़ाते हुए भले प्रकार लिखी (महाबन्धे च) तथा महाबन्ध षट्खण्डागम के षष्ठ खण्ड पर (पञ्चाधिका अष्टसहलां) पाँच अधिक आठ हजार श्लोक प्रमाण व्याख्या लिखी।
अर्थ-इस प्रकार व्याख्यान क्रम को प्राप्त गुरु परम्परा से आया हुआ दोनों प्रकार का सिद्धान्त अत्यन्त तीक्ष्ण बुद्धिवाले शुभनन्दि एवं रविनन्दि गुरु से भीमरथि एवं कृष्णमेघ नदियों के मध्यवर्ती रमणीय उत्कलिका गाँव के निकट विख्यात मगण वल्ली नामक ग्राम में सुनकर और उन्हीं दोनों के निकट बैठकर बप्प देव गुरु (मुनि ने) पूरी तरह उसका अध्ययन कर महाबन्ध को छोड़कर षट्खण्डागम के महाबन्ध नामक षष्ठ खण्ड पर संक्षिप्त व्याख्या लिखी। षट्खण्डागम की व्याख्या निष्पन्न हो जाने पर साठ हजार गाथाओं प्रमाण कषाय प्राभूत की भी व्याख्या लिखी फिर महाबन्ध पर पुरातन व्याख्या को प्राकृत भाषा रूप पाँच अधिक आठ हजार गाथा प्रमाण व्याख्या लिखी।।
काले गते कियत्यपि ततः पुनश्चित्रकूटपुरवासी। श्रीमानेलाचार्यो बभूव सिद्धान्ततत्त्यज्ञः ॥१७७ ||
अन्वयार्थ- (कियत्यपि काले गते) कितना ही समय व्यतीत होने पर | (ततःपुनः) इसके बाद फिर (चित्रकूटपुरवासी) चित्रकूट पुर में रहने वाले (श्रीमान् एलाचार्यः) श्रीमान् एलाचार्य (सिद्धान्ततत्वज्ञः) सिद्धान्त तत्व को जानने वाले (बभूव) हुए। .
अर्थ- कितना ही समय व्यतीत होने के अनन्तर चित्रकूटपुर निवासी श्रीमान् एलाचार्य सिद्धान्त तत्त्वों के ज्ञाता हुए।
| श्रुतावतार
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