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और उसका विशद अर्थ जानकर बारह हजार प्रमाण उन चूर्णिसूत्रों की व्याख्या में अपने ही नाम से उनके व्याख्यान-विवृत्ति रूप से उच्चारणा सूत्र बनाये।
गाथाचू[च्चारणसूत्रैरुपसंहृतं कषायाख्य। प्राभृतमेवं गुणधरयतिवृषभोच्चारणाचार्यैः ॥१५६ ॥
अन्वयार्थ-(गाथाचूर्युच्चारणसूत्रः) गाथा, चूर्णि एवं उच्चारण सूत्र गाथा गुणधर रचित अर्थात् चूर्णि (यतिवृषभरचित) तथा उच्चारणा सूत्रों से उच्चारणाचार्य रचित (उपसंहृत) समाहित (एवं कषायाख्य प्राभृत) इस प्रकार कषायप्राभृत (गुणधर यतिवृषभोच्चारणाचाय:) गुणधराचार्य, यतिवृषभाचार्य एवं उच्चारणा-चार्य विरचित है।
अर्थ- इस प्रकार कषाय प्राभृत नामक आगम ग्रन्थ गाथा चूर्णि और उच्चारणासूत्रों से युक्त है। इनमें से आचार्य गुणधर द्वारा गाधा सूत्र, आचार्य यतिवषभ द्वारा चूणिं सूत्र तथा उच्चारणाचार्य द्वारा उच्चारणा सूत्र रचे गये।
एवं विविधो द्रव्यभावपुस्तकगतः समागच्छन् । गुरुपरिपाट्या ज्ञातः सिद्धान्तः कुण्डकुन्दपुरे ॥१६०॥ श्रीपद्मनन्दिमुनिना सोऽपि द्वादशसहस्रपरिमाणः । ग्रन्थपरिकर्मका षटखण्डात्रिखण्डस्य ||१६१ ।।
अन्ययार्थ- (एवं) इस प्रकार (द्रव्यभावपुस्तकगतः द्विविधः) द्रव्य और भाव पुस्तक गत दो प्रकार का (सिद्धान्तः) सिद्धान्त (गुरुपरिपाट्या) गुरुपरम्परा से (समागच्छन्) आया हुआ (कुण्ड कुन्दपुरे) कुण्ड कुन्दपुर में (श्रीपद्मनन्दिमुनिना) पद्मनन्दी नाम के मुनि द्वारा (शातः) जाना गया। (सोऽपि) उन पद्मनन्दी मुनिने भी (षट्खण्डाद्यत्रिखण्डस्य) पट्खण्डागम के आदि के तीन खण्डों का (द्वादशसहसपरिमाण:) बारह हजार गाथा प्रमाण (परिकर्म ग्रन्थ) परिकर्म नामक ग्रन्थ को (अकरोत्) किया।
विशेष (द्वादशसहस्रपरिमाणं ग्रंथं परिकर्ममकरोत्) ऐसी संस्कृत होना ठीक जंचता है।
अर्थ- इस प्रकार द्रव्य, भाव रूप पुस्तक गत दो प्रकार का सिद्धान्त गुरु परिपाटी से कुण्डकुन्दपुर में पद्मनन्दी मुनि द्वारा (प्रचलितनाम आचार्य कुन्दकुन्द) जाना गया। उन्होंने भी बारह हजार माथा प्रमाण परिकर्म पर टीका या भाष्य रूप में की।
श्रुतावतार