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अर्थ - श्री इन्द्रनन्दि जो इस श्रुतावतार के कर्ता हैं। कहते हैं कि - पेज्जदोस अपर नाम 'कषाय पाहुड़' ग्रन्थ के कर्ता आचार्य गुणधर एवं पुष्पदन्त - भूतबलि मुनिराजों को सिद्धान्त शास्त्र का ज्ञान देने वाले तथा 'योनिपाहुड' ग्रन्थ के कर्ता महा मर्मज्ञ आचार्य धरसेन स्वामी के परम्परा गुरुओं का पूर्वापर क्रम हमें उनकी गुरु परम्परा को कहने वाले आपन एवं मुनिजनों के अभाव के अज्ञात है । अथ गुणधरमुनिनाथः सकषायप्राभृतान्ययं तत्प्रायो । दोषप्राभृतकापरसंज्ञां साम्प्रतिक शक्तिमपेक्ष्य ॥ १५२ ॥ त्र्यधिकाशीत्या युक्तं शतं च मूलसूत्रगाथानाम् विवरणगाथानां च त्र्यधिकं पञ्चाशतकमकार्षीत् ॥ १५३ ॥ एवं गाथासूत्राणि पञ्चदशमहाधिकाराणि । प्रविरथ्य व्याधख्यौ स नागहस्त्यार्यमक्षुभ्याम् ।।१५४ ॥
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अन्वयार्थ - ( अथ) अनन्तर (गुणधर मुनिनाथः) गुणधर मुनिराज (सकषायप्राभृतान्वयं) कषाय प्राभृत नामक (तत्प्रायोदोष प्राभृतापरसंज्ञां ) प्रायोदोष प्राभृत इस दूसरे नाम वाले ग्रन्थ को (साम्प्रतिकशक्तिमपेक्ष्य) अपनी (दैहिक) वर्तमान कालीन शक्ति को देखकर ( त्र्यधिकाशीत्या युक्तं ) तीन अधिक अस्सी तेरासी ऊपर ( शतंमूलसूत्रगाथानां ) सौ मूलगाथा सूत्रों के अर्थात् एक सौ तेरासी गाथा सूत्रों से युक्त ( एवं च विवरण गाथानां त्र्यधिक पञ्चाशतकम्) तथा विवरण गाथाओं का तीन अधिक पचास अर्थात् (५३) त्रेपन (अकार्षीत् ) किया। ( एवं ) इस प्रकार (पञ्चदश महाधिकाराणि) पन्द्रह अधिकारों ने उस पेज्जदोस पाहुडको (नागहस्त्यार्यमक्षुभ्याम्) नागहस्ति तथा आर्यमक्षु के लिये (व्याचख्यौ ) व्याख्यान
किया।
अर्थ- इसके अन्तर उन गुणधर मुनीन्द्र ने कषाय प्राभृत नामक जिसका दूसरा नाम पंज्जदोस पाहुड प्रायोदोष प्राभृत था अपनी सम्प्रति कालीन (दैहिक) शक्ति को देखकर एक सौ मूल गाथा सूत्रों से युक्त तथा त्रेपन वृत्ति गाथाओं से युक्त ग्रन्थ की रचना की जिसमें कि कुल पंद्रह महाधिकार थे । इसे रचकर फिर अपने शिष्य नागस्ति और आर्यमक्षु को उसका विशद व्याख्यान किया । पार्श्वे तयोर्द्वयोरप्यधीत्य सूत्राणि तानि यतिवृषभः । यतिवृषभनामधेयो बभूव शास्त्रार्थनिपुणमतिः ।। १५५ ।।
श्रुतावतार
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