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(बन्धस्वामित्वं) तीसरा बन्ध स्वामित्व अनन्तर (भाववेदनावर्गणाखण्डे ) वेदना तथा वर्गणा खण्ड |
अर्थ- इनमें पहला जीवस्थान, दूसरा क्षुल्लक बन्ध, तीसरा बन्ध स्वामित्व, चौथा वेदना खण्ड तथा पाँचवाँ वर्गणा खण्ड थे ।
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एवं षट्खण्डागमरचनां प्रविधाय भूतवल्यार्यः । आरोप्यासद्भावस्थापनया पुस्तकेषु ततः ॥ १४२ ॥ ज्येष्ठसितपक्ष पञ्चम्यां चातुर्वर्ण्य संघसमवेतः । तत्पुस्तकोपकरणैर्व्यधात् क्रियापूर्वक पूजाम् ॥१४३॥ अन्वयार्थ - ( एवं ) इस प्रकार ( भूतवल्यार्यः ) भूतवलि महाराज ने ( षट्खण्डागम रचनां ) षट्खण्डागम की रचना को ( प्रविधाय ) करके (ततः) अनन्तर (असद्भाव स्थापनया) असद्भाव स्थापना द्वारा ( पुस्तकेषु) पुस्तकों में ( आरोप्य) आरोपण करके, (ज्येष्ठसितपक्ष पञ्चम्यां) ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमी के दिन (चातुर्वण्यसंघसमवेतः) मुनि, आर्यिका श्रावक श्राविका रूप चातुर्वण्य संघ से युक्त हुआ (तत्पुस्तकोपकरणैः) उन पुस्तकों के उपकरणों द्वारा (क्रियापूर्वक) विधिपूर्वक (पूजा) पूजा (व्यधात्) की।
अर्थ - इस प्रकार भूतबलि महाराज ने षट्खण्डागम ग्रन्थ की रचना की । अनन्तर असद्भाव स्थापना से पुस्तकों में आरूढ़कर चातुवर्ण्य संघ की (मुनि, आर्यिका श्रावक, श्राविका ) सन्निधि में ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमी के दिन पुस्तक रूप उपकरणों द्वारा विधिपूर्वक पूजा की।
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श्रुतपञ्चमीति तेन प्रख्यातिं तिथिरियं परामाप । अद्यापि येन तस्यां श्रुतपूजां कुर्वते जैनाः ॥ १४४ ॥
अन्वयार्थ - (तेन) उस कारण से (इयं तिथिः) यह तिथि, (श्रुत पञ्चमीति) श्रुतपञ्चमी इस रूप में (परां प्रख्यातिं ) उत्कृष्ट ख्याति को प्राप्त हुई ( अद्यापि ) आज भी (जैनाः) जैन लोग (येन) जिस कारण से ( श्रुतपूजां ) श्रुतपूजा ( कुर्वते) करते हैं।
अर्थ - उस कारण यह ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमी की तिथि श्रुत पञ्चमी के नाम से पर्व के रूप में अत्यन्त प्रसिद्धि को प्राप्त हुई जिसके कारण जैन समुदाय आज भी इस दिन श्रुतज्ञान की पूजा 'करते हैं।
श्रुतावतार
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