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___ अर्थ-श्री सुधर्माचार्य के मुक्त होने पर जम्बू स्वामी ने उनकी मुक्ति के समय ही केवलज्ञान को प्राप्त किया तथा केवलशानी के रूम में इस भरा यो वर्ष खण्ड में अड़तीस वर्षों तक लगातार विहार कर धर्मोपदेश के द्वारा भव्य जीवों का उपकार कर अष्ट कर्मों का क्षय कर मुक्ति को प्राप्त किया।
एते त्रयोऽपि मुनयोऽनुबद्धके वलिविभूतयोऽमीषाम् । केवलदिवाकरोऽस्मिन्नस्तमवाप व्यतिक्रान्ते ।।७५ ।।
अन्ययार्थ- (एते त्रयोऽपि मुनयः) ये तीनों मुनि (अनुबद्ध केवलि विभूतयः आसन्) अनुबद्ध केवली की विभूत से युक्त थे (अमीषाम्) इनके (व्यतिक्रान्ते) मोक्ष चले जाने पर (अस्मिन्) इस भरत खण्ड के आर्य प्रदेश में (केवल दिवाकरः) केवलज्ञान रूप सूर्य (अस्तं अवाप) अस्त को प्राप्त हो गया।
अर्थ-ये तीनों-गौतम गणधर, सुधर्माचार्य और जम्बू स्वामी अनुबद्ध केवली की सम्पदा को प्राप्त थे। इनके मोक्ष चले जाने पर इस भरत क्षेत्र में केवलज्ञान रूपी सूर्य अस्त हो गया। इनके बाद केवलज्ञान किसी को नहीं हुआ।
जम्बूनामा मुक्तिं प्राप यदासौ तथैव विष्णुमुनिः । पूर्वाङ्गभेदभिन्नाशेषश्रुतपारगो जातः ॥७६ ।।
अन्वयार्थ- (यदा) जिस समय (असौ) यह (जम्बू नामा) जम्बू स्वामी (मुक्ति) मुक्ति को (प्राप) प्राप्त हुए (तदैव) उसी समय (विष्णुमुनि) मुनि विष्णु (पूर्वाजभेदभिन्नाशेष श्रुतपारंगः) पूर्व एवं अओं के भेदों से युक्त सम्पूर्ण श्रुतज्ञान का पारगामी (जातः) हो गया।
अर्थ- जम्बू स्वामी मथुरा नगर के उद्यान से मोक्ष गये उनके मोक्ष जाते ही विष्णु नामक मुनिराज ग्यारह अओं एवं चौदह पूर्षों में विभिन्न सम्पूर्ण श्रुतज्ञान के पारगामी हो गये।
एवमनुबद्धसक लश्रुतसागरपारगामिनोऽवासन् । नन्द्यपराजितगोवर्धनाया भद्रबाहुश्च ॥७७ ।।
अन्ययार्थ- (एवं) इस प्रकार (नन्द्यपराजित गोवोर्धनाहाः) नन्दि, अपराजित, गोवर्धन नामवाले (च) और (भद्रबाहुः) भद्रबाहु (अनुबद्ध सकल श्रुतसागर पारगामिनः) क्रमानुसार सम्पूर्ण श्रुत रूपी समुद्र के पारगामी (अत्र) यहाँ इस भरत खण्ड के आर्य क्षेत्र में ( आसन) थे।
श्रुतावतार