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श्रुत प्रतिपादित किया। (ततः) अनन्तर (तेभ्यः गणिभ्यः) उन उन गणधरों से (अन्य) दूसरे (मुनिवृषभैः) मुनिश्रेष्ठों के द्वारा (तदधीतम्) वह श्रुत पढ़ा गया।
अर्थ-उन सुधर्माचार्य ने भी अपने सहधर्मी जम्बूस्वामी के लिए भी वह श्रुत प्रतिपादित किया तथा उन गणधरों से अन्य श्रेष्ठ मुनियों ने भी वीर भगवान् की दिव्य स्वनि से प्रमत तथा गौतम गणधर द्वारा अझ पूर्वो में ग्रथित तथा सुधर्माचार्य तथा जम्बूस्वामी से प्रतिपादित वह श्रुतज्ञान अन्य-अन्य श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पढ़ा गया।
सन्मतिजिनस्ततोऽसायासनविमुक्तिभव्यसस्यानाम् । परमानन्दं जनयन् धर्मामृतदृष्टि से केन ॥६६ ।। त्रिंशतमिह वर्षाणां विहृत्य बहुजनपक्षानं जगत्पूज्यः। सरसिजवनपरिकलिते पावापुरबहिरुघाने ॥७० ।। वत्सरचतुष्टयेऽर्द्धत्रिमासहीने चतुर्थकालस्य ।
शेषे कार्तिक कृष्ण चतुर्दश्यां निर्वृतिमयाप ।।७१ ।।
अन्वयार्थ- (ततः) तदनन्तर (असौ) यह (जगत्पूज्यः) लोकपूज्य (सन्मति जिन) भगवान् सन्मति महावीर जिनेन्द्र (धर्मामृतवृष्टिसेकेन) धर्म रूप अमृत वर्षा के सिञ्चन से (आसन्नविमुक्ति भव्य सस्यानां) निकट भविष्य में ही जिन्हें मुक्ति की प्राप्ति होगी ऐसे भव्य जीवरूपी धान्यों को (परमानन्दं जनयन) अत्यन्त आनन्द उत्पन्न करते हुए (इह) इस भरत क्षेत्र के आर्य खण्ड में (बहुजनपदान) बहुत से जनपदों में (वर्षाणां त्रिशत) तीस वर्ष तक (विहृत्य) घूमकर (चतुर्थ कालस्य) चतुर्थ काल के (अर्द्ध त्रिमास हीने) साढ़े तीन मास कम (वत्सर चतुष्टये) चार वर्ष (शेषे) शेष रहने पर (सरसिज वन परिकलिते) कमल वन से युक्त (पावापुर बहिरुद्याने) पावापुर के बाहरी भाग के उद्यान में स्थित सरोवर पर से (कार्तिक कृष्ण चतुर्दश्यां) कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी (निवृति) निर्वाण की (आप) प्राप्त
अर्थ- तदनन्तर (गणधर प्राप्ति के अनन्तर) वह जगत्पूज्य सन्मति जिनेन्द्र धर्म रूप अमृत की वर्षा के सिञ्चन से निकट भविष्य में ही मुक्ति प्राप्त होने वाले भव्यजीवरूपी धान्यों को अत्यधिक आनन्द उत्पन्न करते हुए तीस वर्ष तक इस भरत खण्ड के आर्य प्रदेश के अनेक जनपदों में विहार करके जब चतुर्थ काल में
श्रुतावतार