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अन्ययार्थ- (वृषभादि जिनेन्द्र तीर्थकालस्य) वृषभ आदि जिनेन्द्रों के तीर्थ के समय के (अजिताधास्तीर्थकराः) अजित आदि जिनेन्द्र (अन्तर्वायुष्का) उसी अन्तवर्ती आयु वाले (जाताः) उत्पन्न हैं (इति) ऐसा (विज्ञेया) जानना चाहिए।
अर्थ-श्री वृषभदेव आदि तीर्थकों के तीर्थ काल में अजित आदि तीर्थकरों की आयु भी उसी में सम्मिलित है यथा भगवान् वृषभनाथ तीर्धकर का जो तीर्थ काल बताया है उसमें अजितनाथ भगवान की आय भी सम्मिलित है। अजिनाथ भगवान के तीर्यकाल में सामननाथ भगवान की जायुभी सम्मिलित है। इत्यादि पहले-पहले तीर्थकर में उनके बाद के तीर्थंकर की आयु भी सम्मिलित है।
अथ पार्श्वनाथतीर्थस्यान्ते श्रीवर्धमानामाऽभूत् । प्रियकारिण्यां सिद्धार्थभूपतेरन्त्यतीर्थकरः ।।३६ ।।
अन्वयार्थ- (अथ पार्श्वनाथ तीर्थस्यान्ते) तदनन्तर पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थकर के अनन्तर (सिद्धार्थ भूपते) सिद्धार्थ राजा की (प्रियकारिण्यां) प्रियकारिणी से (श्री वर्द्धनान नामा) श्री चर्द्धमान नाम के (अन्त्यतीर्थंकरः) अन्तिम तीर्थंकर (अभूत्) हुए।
अर्थ-इसके अनन्तर तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के पश्चात् वैशाली के क्षत्रिय-कुण्ड के शासक ग़जा सिद्धार्थ की रानी प्रियकारिणी (त्रिशला) के गर्भ से श्री वर्द्धमान नामक अन्तिम चीबीसवें तीर्थकर हुए। इनका श्री वर्द्धपान नाम इसलिये पड़ा था कि इनके जन्म से सर्वत्र श्री की वृद्धि हुई थी। महाराज सिद्धार्थ के महलों में ही नहीं वैशाली के प्रान्तर भागों में भी सर्वत्र सुख समृद्धि छा गयी थी।
त्रिंशद्वर्षेषु कुमार एव विगतेष्वसौ प्रवद्राज ।
द्वादशभिर्वर्षाभिः प्रापद्वै केवलं तपः कुर्यन् ॥४० ।।
अन्वयार्थ- (असौ सिद्धार्थ तनय) श्री वर्धमान (कुमार एव) कुमार काल में ही (त्रिंशद्वर्षेषु) तीस वर्षों के (विगतेषु) व्यतीत होने पर (प्रवव्राज) दीक्षित हुए- घर छोड़ कर दीक्षा हेतु वन को चले गये। (द्वादशभिः वर्षाभिः)- लगातार बारह वर्षों तक (तपः कुर्वन) तप करते हुए (वै) निश्चय से (केवलं) केवलज्ञान को (प्राप्त) प्राप्त हुए।
झुतावतार
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