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लख चौरासी योनि में भम्यो काल अनंत सम्यक् रत्न त्रयी चिन्न भयो, न भवना अंत ॥
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श्रीपाल राम
जीवन का मोड़ बदल कर आध्यात्मिक अनुभव की कलाके अध्ययन से अपने हृदय की विशुद्धि कर आगे बढ़े। हृदय विशुद्धिः परमोधर्मः । यह अनुभव ज्ञान पाने का एक सुन्दर सरल राजमार्ग है । जैसे कि एक रसीले सांटे-शेलड़ी में रस है । वहाँ गांठ नहीं और जहाँ गाँठ हैं। वहाँ रस नहीं । अर्थात् हृदय और आचार विचार की शुद्धि से ही अनुभव ज्ञान का विकास होना संभव है । जहाँ हृदय के मैलापन की गाँठ है वहाँ क्या अनुभव ज्ञान और धर्म टिक सकता ? नहीं । कई लोग कहते हैं कि अनुभवी मानव अपनी पूर्ण अनुभव कला को छिपाना चाहते हैं किन्तु यह एक मिथ्या भ्रम है। मेरु पर्वत ही कभी किसी से छिपाया छिप सकता ? नहीं इसी प्रकार प्रत्येक मानव के लिये अनुभव ज्ञान का द्वार खुला है किन्तु चाहिए उसे पाने की जिज्ञासा और पूर्ण योग्यता ।
अनुभवी सत्पुरुष सदा अपनी अन्तर आत्मा में एक अनूठे अनुपम आनन्द का अनुभव करते हैं किन्तु वे भगवद्वाणी का पत्र व्यवहार के समान पुनः पिष्टपेषण नहीं करते | संत महात्मा ज्ञानी वीतराग के शब्दों की केवल नकल करना बुद्धिमानी नहीं । किन्तु उनके प्रदर्शित सन्मार्ग का आचरण और उस पर अटल रह कर अपने हृदय कि विशुद्धि करना ही तो मात्र भव की वास्तविक सफलता है। इसी में अनुपम आनन्द समाया हुआ है। जो व्यक्ति बगैर अनुभव और सदाचार के केवल सफेद पर काला कर और लम्बी चौड़ी लच्छेदार बाते बना प्रखर लेखक और वक्ता बने घूमते फिरते हैं वे ज्ञानी की दृष्टि में पूरे धर्म ठग लबाड़ी हैं। जैसे कि एक सुन्दर हष्ट पुष्ट नवयुवक की लम्बी नाक पर एक इवेत कुष्ट का धच्चा होने से उस के सारे रूप रंग और नखरे चौपट हो जाते हैं इसी प्रकार अनुभव ज्ञान का प्रभाव मानव की लेखन, वक्तृत्व आदि कला को चौपट कर देता है। सच है बिना अनुभव के श्रुत ज्ञानी के संशय और कर्म का समूह का अन्त होना असंभव ही है। एक तोते का शब्द रटते रहते उसका गला सूखने लगता है किन्तु फिर भी वह जीवन भर राम नाम के गूढ़ रहस्य को पा नहीं सकता है। क्यों कि अनुभव ज्ञान के बिना सारों बाते शून्य होतो हैं। मानों कभी किसी से प्रसंगवश वादविवाद करते समय यदि स्याद्वाद, नय, निक्षेप, हेप, उपादेय ज्ञेयादि सप्रभंगी, चतुर्भगी त्रिभंगी आदि का गुरु गम से गहरा अनुभव न हो तो प्रत्येक मानव को शास्त्रार्थ करते समय सभी में अपने मुंहकी खाकर नीचें देखना पड़ता है। अतः श्रीपाल राम के पाठक और श्रोताओ को चाहिए कि वे अवश्य हो वयोवृद्ध ज्ञानवृद्ध समयज्ञ अनुभवो संत महात्मा महापुरुषों सी चरण सेवा कर उनसे अनुभव ज्ञान प्राप्त करें । जिम जिम बहुश्रुत बहुजन संमत, बहुल शिष्य तो शेठो ।
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राम राम राम "
तिम तिम जिन शासन नो वयरी, जो नवि अनुभव नेोरे ॥ मु०९