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मैं स्त्रय अपने भाग्य का विधाता है। ६ -२ २ -२- २
-२ धोपाल राम सम्यक्त्व धर्म संयम, तप में हृदय रमाएं ।
अविचल विमल सु-पद में, अविलंब जा समाएं ॥५॥ इस गीत का बार बार चिंतन करने से तुम्हारे हृदय में एक आनन्द की अपूर्व लहर दौड़ने लगेगी, आपके दिल का पुराना उजड़ा बाग हरा भरा होकर रहेगा । तुम अपने अन्दर एक विशेष स्फूर्ति का अनुभव करोगे तुम्हारा मन आनन्द और उत्साह से भर जायगा ।
यदि मानत्र आत्म-पुरुषार्थ का वास्तविक प्रयोग कर वीतराग दशा की ओर लगन लगाले तो, वह सहज ही जन्म जन्मान्तर के कर्मों से मुक्त हो मोक्ष-श्री प्राप्त कर लेता है।
मोक्ष का स्वरूप
बंध और बंध के कारणों का अभाव होकर आत्मिक विकास के परिपूर्ण होने का नाम 'मोक्ष' है । अर्थात् ज्ञान और वीतराग भाव की पराकाष्ठा ही 'मोक्ष' है।
अनन्त सुख एवं मोक्ष साधना के अनेक मार्ग हैं, उनमें अति सरल और श्रेष्ट श्री सिद्धचक्र अर्थात् नवपद आराधन एक सुन्दर मार्ग है 1 यह देव, गुरु और धर्म इन तीन तत्वों में विभक्त है।
(१) देव तत्व में श्री अरिहन्त और सिद्ध भगवान है ।। (२) गुरु तत्व में आचार्य उपाध्याय और साधु हैं। (३) धर्म तत्त्व में सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप की गणना है।
कई पुएयवान खी पुरुप इन तीनों तत्वों की विधि सहित आराधना कर शारीरिक रोग, मानसिक व्यथा एवं दुर्गति के बंध से छुटकारा पाते हैं, तथा नवपद के अलौकिक प्रभाव से इस लोक में नाना प्रकार की ऋद्धि-सिद्वि सुख-सौभाग्य भोग कर राजा श्रीपाल के समान भवान्तर में सद्गति को प्राप्त करते हैं।
सम्राट श्रेणिक-पूज्य गुरुदेव ! राजा श्रीपाल कौन हैं? उन्होंने श्री सिद्धचक्र की आराधना किस प्रकार की ? कृपया परिचय दें।