________________
IN पल्लेख इस प्रकार है। सम्बत् १९४९ वर्षे कार्तिक सुदि पूर्णिमासी मेदनीपुरवरे ॥
(४) प्रांत कच्छ माडी नगर में श्री धर्मनाथस्वामि प्रसादस्थ शानभंडार में सुरक्षित है, पत्र सं. ७६ पञ्च पाठी 1 | प्रान्त में पुष्पिका इस प्रकार है___ संवत् १६६७ वर्ष मागसिर मासे शुक्ल पक्षे एकादश्यां तिथौ गुरुवासरे श्री जैसलमेर दुर्ग प्रवरे, राउलश्री भीमजी राज्ये, श्री लोका गच्छे आचार्य श्री ६ रत्नसीजी पठनार्थ, संवाति तेजपाल पुत्र संघाति नीवा, ततः पुत्र संघपति कचरा, स्वहस्तेन लिखिता, ऋषि श्री पृथ्वीमल्ल ऋषिरत्ना, लिखा पिता वाच्यमाना शुभं भवतु ।
उपरोक्त प्रतियों के आधार से स्वर्गस्य मुनिजी गणि जी ने संशोधन करने का प्रयास किआ और भव्य जीवो के उपकारार्य द्वितीय दीपिका श्री हर्षकुलगणि रचिन भी इसमें संमिलित की गई है, इसलिये पढनेवालो को बड़ी मुविधा रहेगी।
संशोधन करते समय वृहबृत्ति एवं हर्षकुलगणि की दीपिका संमुख रखके संशोधन किया है किसी किसी जगह पर उपयोगी पाठ समज करके पाठो के टिप्पण भी किए गये है। कुछगणिविरचित दीपिका इस प्रतिमें संपूर्ण नहि छपा है, इसका महत्वपूर्ण भाग हि इसमें दिया है।
पाठकप्रवर श्री साधुरंगमणि का विशेष परिचय नहीं मिलने से यहां नहीं दे सकता हूं और जो परिचय मो इस ग्रंथ के अंतिम प्रशस्ति पृष्ठ-सं. १५४ पर दी गई है. इससे उनका परिचय मालुम हो जाता है.