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________________ ग्रंथ (चरित्र) रचनाका कारण । ।३ ग्रन्थ (चरित्र) रचनाका कारण अनन्त अलोकाकाशके ठीक मध्यभागमें असंख्यात प्रदेशी HE४३ घना नाण, होने पर फैलाकर अपनी कमर पर ।। हाथ रक्खे खड़े हुए मनुष्यके आकारका, पूर्व पश्चिम नीचे सात राजू चौड़ा, फिर क्रमसे घटता हुआ सात राजू, ऊचाई पर केवल एक ही राजू, और यहांसे साढ़े तीन राजू उचाई तक क्रमसे बढता हुआ ५ राजू होकर फिर क्रमसे घटते हुए उपर साढ़े तीन राजू जाकर एक राजू मात्र चौड़ा और उत्तर दक्षिण सर्वत्र सात सात राजू ऊपर से नीचे तक चौड़ा अर्थात नीचेसे उपर तक कुल १४ राजको ऊचाई वाला ३४३ धनराजू प्रमाण असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश है । इसमें इतने ही (जघन्य युक्तासंख्यात प्रदेश प्रमाण प्रदेशों वाले) धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य अखंड सर्वत्र व्याप्त हैं। इसके सिवाय लोकाकाश प्रमाण हो असंस्थात प्रदेशोंवाले, अनन्तानन्त जीव द्रव्य संख्यात असंख्याप्त तथा अनन्त प्रदेशों (परमाणओं) के अनेकों स्वन्धों तथा फरमाण स्वरूपरूपी पुदगल और लोकप्रमाण असंन्यात कालाभोंसे यह लोकाकाश खब ठमाटम भर रहा हैं । इस लोकाकाश के मध्य (उत्तर, दक्षिण दोनों ओर तीन तीन राजू छोडकर ठोक मध्य भागमें) एक राज लाम्ची, एक राज चौड़ी और चौदह राज ऊची त्रस नाडी है, अर्थात बस । दो, तीन. चार और पांच इन्द्रिय बाले ) जीव केवल इतने ही दो बमें रहते हैं । परन्तु स्थाबर (एकेन्द्री) त्रस नाडों के अन्दर और बाहर सर्वत्र पाये जाते हैं । लोकावरश के ऊळ, मध्य और अधोलोक इस प्रकार तीन खंड माने गये है । नीचेसे लेकर उपर सात राजू तक अस नाड (अधोलोक) में कमसे सातवां, छठवां, पाचवां, चौथा,
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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