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मैनासुन्दरीकाः श्रोपालसे व्याह ।
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। हाम पुत्री ! तुने न मालुम : पूर्व जन्मों में कैसे २. कर्म किये. थे, जिनसे इस अथाह दुःख-सागरमें तु डुबोई गई. ! हाय ! तू। कैसे इस आयुको पूर्ण करोगी? हाय ! पुत्रो ! क्यों तूने इच्छित्त वर न मांग नियम ? हायः! कहां त मास-मुकुमारी. बालिका और कहां वह कोही पति ? अरे निदयो कमें किंचित् भी दया नहीं आई मला, अवापर तो यह अन्याय न करता ।
है स्वामो ! आप दयासिन्धु प्रजापालक थे, परन्तु यापके दया-क्षमा संतोष आदि गुण कहां चले गये ? अयुक्त कार्य क्यों किया ? उस समयके इनके सदनको सुनकर पत्थर भी पिघल जाता तो मनुष्यको बात ही क्या है ?
राजा पहुपाल स्वयं नेत्रों में आंसू भर गद्गद् कंठसे सदन कर कहने लगे-हाय कुमति ! तुझे और महीं ठिकाना न मिला, जो आकर मेरे ही हृदयमें वासकर, एक भोली कन्या को ग्राम बना लिया ! हाय ! मैंने हठात् मत्रियों के वचन नहीं सुने, उनका ही तिरस्कार कर दिया ? पुरोहितजीने समझाया तो भी न माना । मैने अपने थोडेसे मिथ्याभिमानके धश होकर पुत्रीको आजन्मके लिए दु:खी किया ! हाय मैना ! क्या करू ? निःसंदेह तेरा कहना सत्य है। बास्तवमें तेरे पूर्वोपार्जित कर्मोका उदय ही ऐसा था, जिसका मैं निमित्त बन गया । अब क्या करू ? हे पुत्री ! तू अपने इस कठोर-. हृदय अपराधी पिताको, अपनी उदारतासे अमा कर !
जहां इस दृश्यको देखकर कठोरसे कठोर हृदयी पुरुष भो एकबार जो खोलकर रो देता, वहां उस सती शीलवती सुन्दर कोमलांगी बालिकाके चेहरेपर अपर्व लूशी झलक रही थी। ___वह इन सब दर्शकोंकी चेष्टापर घुणा प्रकट करती हुई. सोचती थी कि न मालूम क्यों ये लोग ऐसे शुभ अवसर पर