________________ श्रीपाल चरित्र / कर त्रिशुद्ध पा मग लगे, जो नर चतुर सुजान / सो सुरनर सुख भोगके, अन्त लहें निर्वान / / जो नर वांचे भावसे, सुने सुनावे सार / मन बांछिप्त सुख सो लहे, अरु पावें भव पार // पंच परम पद२ प्रण मि, सरस्वती उर धार | सरल देश-भाषा यही, पद्य ग्रन्थ अनुसार // तीर्थकर भज शल्य तज, ज्ञेय पदार्थ विचार / ज्येष्ठ कृष्ण ग्यारस करी, कथा पूर्ण सुखकार || शब्द भेद जानो नहीं, पढ़ो न शास्त्र पुरान / न्यूनाधिकता होय जो, क्षमा करो बुधवान / / नरसिंहपुर है जन्म थल जाति जेन परमार | 'वीपचन्द' वर्णी करी, भाषा बुद्धिः अनुसार / ' है समाप्त