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धोपाल चरित्र।
इसमें जीव अनादिकालसे अकेला भटकता है।
स्वर्ग नर्क हि एक जावे, राज इक भोगे सही । कर्मफल सुख दुःस्त्र सब ही, अन्यको बांटे नाहीं ॥
एकत्व भावना । कोई किसीका साथी नहीं है ।
देह जब अपना न हादे, मेव जिह नित ठानिये । तो अन्य वस्तु इन पर हैं. किन्हे निजकर, मानिये ।
अन्याय भावना । मिथ्यात्मके उन यसे यह इस घृणित शनीर में लोलुप हुमा विषय सेवन करता है।
मलमूत्र आदि पुरीष जामें, हाड मांस मु जानिये । धिन देह गेह जु चामलपटी, महा अधि बखानिये ।
अशुचि भावना। और रागद्वेष करके कर्मोको उन करता हैं ।
मग वचन काय श्रियोग द्वारा, भाव चंचल हो रहे । तिनसे जु द्रव्यऽरु भाव आखा, होप मुनियर यों कहे "
आसव भावना। यदि यह मन, वचन, काय को रोककर अपने आत्मामें लीन हो तो कर्म न बधे ।
योगको चंचलपन, रोके जु चतुर बनायके । तत्र कर्म भावत रुके निश्चय, यह सुनो मन लायके ।। .
सवर भावना वात, तप, चारित्र धारण करे तो पूर्व सांचित कर्म भी क्षह य का ।