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________________ मन श्रीपाल चरित्र। 'छोड़े परन्तु नीति और धर्म कहता है कि नहीं, इस सपय चोकना पाप है। इससे स्कामोद्रोह समझा जपता है । वर्षोसे जिनका नमक खा रहे हैं, आज समय आने पर अवश्य ही साथ देना चाहिये । स२. २ का कुरा न . पण वीर पुरुषों का नाम पृथ्वीवर अमर रहता है । ___ भाप जाओ, और तन, मनसे स्वामीका साथ दो । घरको चिन्ता न करना। हम लोगों का कर्म हमारे साथ है । आप कृतकाय होने की चेष्टा करना, युद्ध में हारकर पीठ दिखाकर च पोठपर घाव खाकर पीछे घर मत आना । पोठ दिम्बाकर मुझं मुह न दिखाना । कायर की स्त्री कहलाने के बदले मुझे विधवा कहलाना अच्छा हैं । शूरवोरोंकी स्त्रियां विधया होने अर्थात् युद्ध में उनका पति मर जानेपर भी वे विधवा होती है, क्योंकि उनके पतियों का नाम सदेव जीता है। जाओ और जय प्राप्त करो। अपने घराने में स्थानोंने भी ऐसे ही नाम कमाया हैं। शरीर, स्त्री, पुत्रादि कोई काम नहीं देने । संसारमें फायरका जोना मरनेसे भी खराब हैं, क्योंकि एकदिन तो मरना है ही क्योंकि यह विनाशीक शरीर कोटि यत्न करने पर भी स्थिर नहीं रहेगा । तब बदनाम होकर बहुत जीनेते नै कमामी के साथ शीघ्र ही मरजानेमें हानि नहीं है । अपधात नहीं करना चाहिये, और जीते जी कायर भी नहीं होना चाहिये । आज हर्ष है कि आप युद्ध में जा रहे हैं । आप कृतकार्य होंगे और मैं भी अपने आपको वीर पुरुषों की पहली कहलानेका सौभाग्य प्राप्त करूगो।' शूरवीर शूर स्त्रियां इस तरह सिखायन देती थीं कि कायरोंकी कापर स्त्रियों कातो थीं-'स्वामीन ! देखो, मैं कहती थी कि इस प्रकारको नौकरी मत करो, यह मौतकी निशानी है । न मालुम कब अचानक आ वीतेगी। मेरा
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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