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श्रीपालका वीरदमनसे युद्ध । श्रीपालका काका वारदमनसे युद्ध श्रीपालजीको दूतमे पह समाचार सुनते ही कोध उत्तम हो उठा । ये होठ डंसते हुए बोले- क्या वोर दमनको इतना साहस हो गया है, जो मेरे राज्यपर, मेरे द्वारा दिए हुये राज्यपर, इतना गर्जता है, और मुझे मेरा ही राज्य पीछा देनेके बदले युद्ध करना चाहता हैं ? अच्छा ठीक है, अभी मैं: इसके मानको मदन कर अपना राज्य छुड़ाता हूँ।
यह सोचकर उसने तुरन्त ही सनापतिको आज्ञा दी कि सैन्य तयार करो। यहां आज्ञाकी देरी धी कि सौन्य तयार हो गया। सब बडे२ सामन्त बख्त र पहिरकर कठोर हथियार बांधकर वाहनोंपर चढ़ चले। हाथी, घोडे, प्यादे रथ इत्यादिके समह यथानियम दिखाई देने लगे । शूरोंके चेहरे सूर्य के समान चमकने लगे। घोडोंकी हींस हाथियों की चिंघार: झुलोंकी झनकार, रयोंकी गडगडाहटसे आकाश गूजने लगा। धूल उड़कर बादलोंको शंका उत्पन्न करने लगी। बाजोंक मारे मेघगर्जना भी सुनाई नहीं देती थी।
इस तरह चतुरङ्ग दल सजकर तैयार हुए, और नगर बाहर रंगभूमिमें आकर जम गये। एक ओर श्रीपालकी सेना और दूसरी ओर काका वीरदमनकी सेना लग रही थी। दोनों परस्पर दाव घात विचारते थे। दोनों ओर बहुत दूर तक: सिवाय मनुष्यों, घोडा, हाथी, रथ आदिके कुछ नहीं दिखाई देता था। शूरवीर रणधीर पुरुष अपने२ कुटुम्बी तथा स्त्रियोंसे क्षमा मांग२ कर और उन्हें धर्य दे देकर चले जा' रहे थे । उनकी स्त्रियां भी उनसे कहती थी-- __ 'हे स्वामिन् ! यद्यपि जी तो नहीं चाहता कि आपको