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________________ श्रीपालका चंपापुर जाता ! १५७ . --- -. -..-=-==rxmmmm...श्रीपालजी इस प्रकार बड़ी विभति सहित स्वदेश घारके उद्यान में आये, और नगरके चहुं ओर डेरे डलवा दिए । मो नगर निवासी इस अपार सेन्यको देखकर हक्का-बक्कासे भुल गये, और सोचने लगे कि अचानक ही हम लोगोंका काल कहांसे उपस्थित हुआ है ? पश्चात् श्रीपाल सोचने लगे, कि इसी समय नगर में चलना चाहिये । ठाक है-बहुत दिनोंने बिछुरी हुई प्यारो प्रजाको देखने के लिए ऐसा कौन निष्ठर राजा होगा, जो अधीर न हो जाय ? सभी हो जाते हैं। तब मंत्रियों ने कहा- स्वामी ! यकायक नगर में जाना ठोक महीं है । पहिले सन्देशा भेजिये, और यदि इस पर कोदमन सरल मनसे ही आपको आकर मिले तो ही इस प्रकार चलना ठोक है अन्यथा युद्ध करना अनिवार्य होगा। क्योंकि राज्य हाथमें भा जाने पर कचित् पुरुष ही ऐसा होगा, जो चुपकेसे पीछा सौप दे। इसलिए यदि उन्हें कुछ शल्य होगी तो भी प्रकट हो जायगी।" श्रीपालको यह मंत्र अच्छा लगा, और तुरन्त दूतको बुलाकर सब बात समझाकर राय वीरदमनके पास भेजा। वह दूत शोन ही राजा वीरदमनको सभामें पहुंचा, और नमस्कार कर कहने लगा 'हे महाराज ! आज राजा श्रीपाल बहुत परिग्रह और विभव सहित आ पहुंचे हैं। सो आप चलकर शीघ्र हो उनसे मिलों। और उनका राज्य पीछा उनको सौंप दो।' यह सुनकर वीरदमन पहिले तो प्रसन्न हुआ, और श्रीपालजीकी कुशल पूछने लगा। जब बूतने सब वृत्तांत-घरसे निकलने, विदेश जाने, बाळ इजार रानियों के साथ विवाह करने और बहुत सें
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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