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श्रीपालका अनेक राजपुत्रियों से माह 1 [ M एक दिन कुछ सोच विचारकर राजाके पास आकर आशा ली और सोल हसौ स्त्रियों को विदा कराकर वहां आये अहो नवसौ स्त्रियां थीं, और वहाँके राजासे भी घर जानेकी आज्ञा मांगी।
तब राजाने कहा--कहा 'हे गुणधीर ! आपके प्रसंगसे मुझे बडा आनन्द होता है इसलिये कृयाकर कुछ दिन और भी इस स्थानको पवित्र करो।" तब धोपालने श्वसुरका कहना मानकर कुछ दिन और भी वहां निवास किया । पश्चात् वहांसे भी सब स्,ि यो विदा कारगर आप, और वहाँसे चित्र रेखाकी विदा कराई और पुण्डरीकपुर आकर कोकण देशकी दो हजार कन्यायें विवाही, फिर मेवाड (उदयपुर) को सौ कन्याएं विवाही, फिर तैलंग देशकी एक हजार विवाही, पश्चात् कुकुमद्वीपमें आये, और गुणमाला तथा रयनमंजषासे मिलकर वहींपर कुछ समय तक विश्राम किया 1 सुखमें समय जाते मालूम नहीं पड़ता है. सो बहुतसो सनियों सहित क्रीडा करते हुए सुखसे काल व्यतोत करने लगे।
श्रीपालका उज्जैनको प्रयाण एक दिन राजा श्रीपाल रात्रिको सुखसे नींद से रहे थे कि अचानक नींद खुल गई और मैनासुन्दरीको सुधमें बेसुध हो गये। वे सोचने लगे-"ओहो ! अब तो बारह वर्षमें योगे ही दिन शेष रह गये हैं। सो यदि में अपने कहे हुए समय पर नहीं पहुँचूगा, तो फिर वह सती स्त्री नहीं मिलेगी इसलिये अब शीघ्र ही वहां चलना चाहिये, क्योंकि इतना