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________________ श्रोपालजोको विदा। [१०३ सिन्धुपार अण्डा घर, भ्रमै दिशान्तर जाय । टटहरी पक्षी कबहुँ, अण्डा नहीं भुलाय ।। अर्थात्-टटीहरी पक्षी समुद्रके किनारे अंडे रखकर दिशा तरमें चले जाते हैं, परन्तु अपना अण्डा नहीं भूलते है । उसी प्रकार मैं आपको भूल नहीं सकता। क्योंकि यद्यपि चन्द्र आकाश में, रहे पयिनी ताल । जो भी इतनी दूरने, विमानत रग्ड स्याल ।। अर्थात-दूर चले जानेसे भी सज्जनोंकी प्रीति कम नहीं हो सकती है। जैसे चन्द्रमा आकाशमें रहते हुए भी कुमुदि. नोको प्रफुल्लित करता रहता है । और दुर्जन सेवा कोजिये, रखिये अपने पास । तोहू होत न रंच सुख, ज्यों जल कमल निवास ।। अर्थात् दुर्जनको नित्य सेवा भी कीजिये और सदा पास रखिये तो भी प्रीति नहीं होती। जैसे जलमें रहकर भी कमल उससे नहीं मिलता है। इसलिए हे राजन् ! हम पक्षी तुम कमल दल, सदा रहो भरपूर । मुझको कबहु न भूलियो, क्या नीरे क्या दूर ।। इत्यादि। इस प्रकार अवसुर जंवाईका परस्पर प्रेमालाप हुमा और पश्चात् श्रीपालजीने रयनमंजूषाको साथ लेकर हँसतीपते प्रस्थान किया।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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