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श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद] मिलता है कि भगवान की वाणी असाधारण होती है इसलिये उसे दिव्य कहते हैं । जेसे मेघ का पानी एक रूप है तो भी वह नाना वृक्ष और बनस्पतियों में जाकर नाना रूप परिणत हो जाती है उसी प्रकार दाँत, ताजु, कोट और कम्ड प्रादि कहलन चलन से रहित बह वाणी १८ महाभाषा और ७०० क्षुद्रभाषाओं में परिणत होकर युगपत् समस्त भन्यों को आनन्द प्रदान करती है अतः दिव्य है।
भगवान की वाणी अर्धमागधी भाषा रूप है ऐसा ग्रन्थों में कहा है सो यह प्राकृत भाषा का ही एक भेद है । सात प्रकार की प्राकृत भाषा होती है-(१) भागधी (२) आवन्तिका (३) प्राच्या (४) शौरीनी (५) अर्धमागधी (६) वाही को (७) दाक्षिणात्य ।
__ आज वक्ता की वाणी को ध्यान वाहक यन्त्र के द्वारा दूरवर्ती श्रोताओं के कानों के पास पहुँचाया जाता है किन्तु उस यंत्र की सहायता से वाणी समीप में अधिक उच्च स्वर वाली और दूर में मन्द स्वर बाली होती है पर जिनेन्द्र भगवान की वाणी समीप और दूरवर्ती सभी को समरूप से पूरी स्पष्ट और अति मधुर सुनाई देती है । तथा मगध नामक व्यन्तर देव के निमित्त से विभिन्न भाषाओं में परिणत हो जाती है और सर्वजीवों को अपनी-अपनी भाषा में स्पष्ट सुनाई देती है।
ध्यनिनातेनपञ्चास्तिकायलक्षरण विस्तरम् ।
प्रोवाच सप्त तत्वार्थ पदार्थान् स जिनेश्वरः ॥ __ अन्वयार्थ-(स जिनेश्वरः) उन श्री महावीर स्वामी ने (ध्वनिना) दिव्य ध्वनि के द्वारा (पञ्चास्तिकायलक्षण) पाँच अस्तिकाय का लक्षण (सप्ततत्वार्थपदार्थान् ) सप्त तत्व और नब पदार्थों को (विस्तरम्) विस्तार से (प्रोवाच) कहा ।।
भावार्य--भगवान ने अपनी दिव्यध्वनि में पाँच अस्तिकाय, सप्त तत्व और नव पदार्थों का वर्णन किया । जिनका स्वरूप आगम में इस प्रकार है
अस्ति काय किसे कहते हैं
संति जदो तेरोदे प्रत्थीति भणन्ति जिणवरा जम्हा।
काया इव बहुदेणा तह्या काया य अस्थिकाया य द्रव्य संग्रह।।
अर्थ .. जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पांचो द्रव्य सदा विद्यमान रहते हैं इसलिये इन्हें अस्ति कहते हैं और बहुप्रदेशो होने से कायवान कहते हैं । धर्म अधर्म और लोकाकाश तथा एक जीव द्रव्य ये सभी असंख्यात प्रदेशी है। पुद्गल द्रव्य संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश वाले हैं। यद्यपि पुद्गल परमारण एक प्रदेशी भी है पर वह पुनः स्कन्ध पर्याय रूप परिणत हो जाता है इसलिये कायवान ही है।
तत्व-तत्व सात है-जीब, अजीब, आस्रव, बन्ध, संवर. निर्जरा और मोक्ष । पदार्थ-- पदार्थ ६ है । उक्त सप्त तत्वों में पुण्य और पाप इन दोनों के मिलाने से ६ पदार्थ होते हैं ।