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श्रोपाल चरित्र दसम् परिच्छेद]
[५२६ भावार्थ-यहाँ आस्रव भावना का स्वरूप कहते हैं । आस्रव का अर्थ है पाना अर्थात् पात्मा में कमों का प्रविष्ट होना । कारणपूर्वक ही कार्य होता है। प्रास्रब के भी पाँच कारण हैं-१. मिथ्यात्व २. अविरति ३. कषाय ४, योग और ५. प्रमाद । यहाँ कषाय में प्रमाद को अन्तर्भूत कर चार ही मुख्य कारण लिए हैं। मिथ्यात्व के पांच भेद हैं---
१. एकान्त-अनेक धर्मात्मक वस्तु को किसी एक धर्म से युक्त ही कहना यथा वस्तु क्षणिक ही है । नित्य ही है। सामान्य ही है। विशेष ही है। भेदरूप ही है । अभेदरूप ही है इत्यादि । चूकि वस्तु में अपेक्षाकृत उपर्युक्त सभी धर्म विद्यमान है, किन्तु एकान्तवादी किसी एक रूप ही कथन करते हैं यही एकान्त मिथ्यात्व है।
२. विपरीत मिथ्यात्व हिंसा में धर्म मानना । परमात्मा का अवतार मानना । प्रदेव को देव, कुशास्त्र को शास्त्र, कुगुरु को गुरु मानना इत्यादि विपरीत मान्यता विपरीत मिथ्यात्व है।
३. विनय मिथ्यात्व-खरे-खोटे, सत्य-असत्य, हेय उपादेय का विचार न कर सभी धर्मों, धर्मात्माओं आदि का समान रूप से आदर-सत्कार करना अर्थात् मिथ्यात्वो गुरु प्रादि और सम्यग्दृष्टियों का एक समान विनय करना बिनय मिथ्यात्व है ।
४. संशयमिथ्यात्व -जिनेन्द्र भगवान द्वारा कथित तत्व सही हैं या नहीं । सूक्ष्मतत्त्व समझ में नहीं पाता। परलोक, प्रात्मा, परमात्मा, स्वर्ग-मोक्ष प्रादि हैं या नहीं इस प्रकार की बुद्धि का होना संशय मिथ्यात्व है।
५, अज्ञान मिथ्यात्त्र—प्रात्मा को अज्ञान रूप मानने, अथवा अज्ञान ही सुख का कारण है । अजान से ही मोक्ष होता है इत्यादि मस्करीपूर्ण का सिद्धान्त अज्ञान मिथ्यात्व है। ये पाँचों प्रकार के मिथ्यात्व संसारबर्द्धक खोटे प्रास्रव के कारण हैं।
दूसरा प्रास्रव का हेतु अविरति है । इसके १२ भेद हैं । षट्काय जीवों के रक्षा नहीं करना ये ६ प्रकार और पांच इन्द्रियों और मन को वश नहीं करना ये ६, इस प्रकार सब १२ भेद हो जाते हैं।
जो प्रात्मा को कषै-पीडा दें ये कषायें हैं । इनके २५ भेद हैं । अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार । अप्रत्याख्यान-क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार, प्रत्याख्यामि-क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार, सज्वलन-क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार । इस प्रकार सर्व १६ कषाय तथा, हास्य, रति, अरति, खोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुष वेद, और नपुसक वेद, ये नव कषाय हैं । इस प्रकार २५ कषाएँ प्रास्त्रव के कारण हैं ।
__ योग के १५ भेद हैं । मम के चार-सत्य, अमत्य. उभय और अनुभय । वचन - सत्य, अनत्य, भय और अनूभय । काय योग के ७ भेद है--औदारिक काय, योग, बैक्रियक काय योग, साहारक काय योग, औदारिक मिश्र योग, वैयिक मिश्र, माहारक मिश्च और कार्माण काय योग इस प्रकार सब १५ योग हैं ये भी कमग्निव के कारण हैं । ये शुभरूप परिण