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[श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद मद-मैं बहुत बड़ा विद्वान हूँ ज्ञानी हूँ मेरे समान दूसरा नहीं है ऐसा विचार करना ज्ञानमद है।
(२) पूजा का मद-सब लोग हमारी पूजा अर्चना वा सम्मान करते हैं मेरे समान अन्य को पूजा प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है इस प्रकार अहंकार करना पूजा मद है ।
(३) आति मद—मैं उत्तम जाति वाला हूँ इस प्रकार अहंकार करना जाति मद है।
(४) बल का मद-मेरे समान बलिष्ठ कोई भी नहीं है इस प्रकार अहंकार करना बल मद है।
(५) ऋद्धि मद–मुझे अनेक प्रकार की ऋद्धियां प्राप्त हैं अत: मेरे समान महान दूसर नहीं है इस प्रकार अहंकार करना ऋद्धि मद है ।
(६) तप मद- मैं अनशनादि उत्कृष्ट तप को करने वाला हूँ इस प्रकार तप वा मद करना तपोमद है।
(७) कुल का मर--मै उच्च कुल वाला हूँ अतः मुझसे बड़ा दूसरा यहाँ कोई भी नहीं है ऐसा अहंकार करना कुल का मद है।
(८) वपु-शरोर का मद-मेरे समान रूपवान कान्तिमान शरीर दुसरे का नहीं है इस प्रकार अपने सुन्दर शरीर का अहंकार करना बपुमद है ।
महामण्डलेश्वर राजा श्रेणिक महाराज, भेद प्रभेद सहित इन अन्तरङ्ग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिये निरन्तर सावधान वा प्रयत्नशील रहते थे ।।७।।
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तस्य श्रेणिक भूपस्य दिव्यरूपस्य संबभौ ।
चेलिनी नामतो राज्ञी रतिर्वा काम-भूपतेः ॥८॥ अन्वयार्थ (दिव्यरूपस्य) दिव्य रूप के धारी (तस्य श्रेणिक भूपस्य) उस धेणिक राजा की (चेलिनी नाम तो राज्ञी) चेलिनी नामक रानी थी जो (कामभूपते: रतिः वा) कामदेव की पत्नी रति के समान (संबभी) शोभती थी।
भावार्थ-प्रस्तुत प्रलोक में राजा श्रेणिक और रानी चेलनी के अतिशय रूप लावण्य का संकेत करते हुए आचार्य लिखते हैं कि श्रेणिक महाराज कामदेव के समान सुन्दर थे और चेलिनी भी अति रूपवती, जिनधर्म परायणा, शीलवन्ती थी तथा कामदेव की पत्नी रति के समान शोभती थी।1८॥
रूपलावण्य सौभाग्य भाग्यरत्नाकरक्षितिः । सा रेजे निजपुण्येन सुबता बा मुनेर्मतिः ॥१॥