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श्रीपाल चरित्र नवम परिच्छेद ]
क्रियते चन्दनः पूजा दुःख सन्ताप नाशनैः । करागुरुकाश्मीर मिश्रितैः शर्मदायिभिः ६६॥ अक्षतानां महापुजेः पुण्यपुजेरियामलेः । जाति चम्पक पद्मादिशतपत्र शतोत्करः ॥७०॥ पञ्चप्रकार पक्वान्नैनना नैवेद्यराशिभिः । व्यञ्जनं रञ्जनैश्चापि सुवासितदिगन्तः ॥ ७१it रत्नकष्णुं सद्दीचैर्जयो । धूपैः कालागरुत्पन्नैः भाग्य सौभाग्य दायकः ॥ ७२ ॥ फलैर्नारङ्ग जम्बीरैर्नालिकेराम्रमोचकैः । मातुलिङ्गादिभिः दिव्यैस्सार मुक्ति फलप्रदः ।।७३॥ पूजयित्वा जिनानुच्चेस्सिद्धांस्त्रैलोक्य सम्मदान् । अनाऽपि महाभयं समाराध्यस्सुभक्तितः ॥७४॥ स्वर्णपात्रे पुनः कृत्वा महार्घ्यं जयमालया । प्रदक्षिणा प्रदातव्या गीतवादित्रलम्भ्रमः ॥७५॥ स्तुति श्रीसिद्धचक्रस्य कृत्वा पापप्रतारिणीम् । यन्त्रस्योपरि दातव्यो भ्रष्टोत्तरशतप्रमाः ॥ ७६ ॥ जायं एकाग्रचित्तेन जाति पुष्पेण धी धनैः । अथवाश्चेतिसौगन्ध्य सुमनोभिर्मनोहरैः ॥ १७७॥
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सिद्धि देने वाले
श्रभ्ययार्थ - (जिनेन्द्राणाम् ) जिनविम्बों (च) और ( सिद्धिदम् ) (सिद्धचक्रम) सिद्धचक्र को ( स्थापयित्वा ) स्थापित करके ( कपूरवासित) कपूर से सुगन्धित (पापप्रणाशन) पापों की नाशक (स्वच्छतोय:) निर्मल जल से, ( दुःख सन्ताप नाशनैः ) दुःख, दारिद्रय, पीडा नाम करने वाली, (सामदायिभिः) शान्ति प्रदायक ( क रागरू काश्मीर) कपूर, अगरु, चन्दन से (मिश्रित ) मिले हुए ( चन्दनः ) चन्दन से पूजा ( क्रियते ) की जाती है। इसी प्रकार ( पुण्यपुञ्ज) पुण्यसमूह (इव) समान (श्रमः) पवित्र ( अक्षतानाम) अक्षतों के ( महापुजे) महा गुजों से, (जाति सम्पर्क पचादि) जाति, चम्पा, कमल, गुलाब, चमेली आदि ( शतपत्र ) सौंदल वाले (शतोस्करैः ) सैकड़ों पुष्पों से ( पञ्चप्रकार ) पाँच प्रकार के (पक्वान्न) मिठाईयां (रञ्जनैः) खुरमा पुझा, वीरादि (च) और (अपि) भी ( सुवासितदिगन्तर्क) दिशाओं को सुवासित करने वाली ( नाना नैवेद्यराशिभिः) अनेकों प्रकार की नैवेद्यों ही पकौडी, खाजादि ताजाओं से, ( मनोध्वान्त) मन के मोहतम ( हरैः ) नामक