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श्रीपाल चरित्र अष्टम परिच्छेद ]
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सल्लेखना का चिन्तवन करना चाहिये । किन्तु उस सल्लेखना की प्राप्ति के लिये निरतिचार व्रतों का पालन आवश्यक है | श्रावक के ११ प्रतिमा रूप व्रत होते हैं वे भी स्वर्ग सुख को और क्रमशः श्रतीन्द्रिय मोक्ष सुख को देने में समर्थ हैं अतः ग्यारह प्रतिमा रूप व्रतों को मैं अर्थात् सकल कीर्ति आचार्य जिनवचनानुसार कहता हूँ, हे भव्य पुरुष ! हे राजन् ! तुम ध्यान पूर्वक सुनो ।।६६, ७०।।
दर्शन प्रतिमापूर्वा द्वितीया व्रत लक्षणा । सामायिकाख्यथा प्रोक्ता तृतीयामुनिसत्तमः ॥७१॥ चतुर्थप्रोषधारया च सचित्ताख्या च पञ्चमी । रात्रिभुक्ति परित्यागात् षष्ठी च प्रतिमा भवेत् ॥ ७२ ॥ सप्तमी ब्रह्मचर्याख्या प्रारम्भत्यागतोऽष्टमी । परिग्रह परिणामी महा तुमच्या या प्रतिमा दशमी शुभा । नोद्दिष्ट भ्रामरी चैकादशी प्रोक्ता सुधोत्तमः ॥७४॥
अन्वयार्थ --- (पूर्वा) पहली ( दर्शनप्रतिमा ) दर्शन प्रतिमा है ( द्वितीया ) दूसरी ( व्रत लक्षणा ) व्रत प्रतिमा है (तृतीया) तीसरी ( मुनिसत्तमः) श्रेष्ठ मुनिजनों के द्वारा ( सामायिकास्यथा प्रोक्ता ) सामायिक नामक प्रतिमा कही गई है ( च चतुर्थ) और चौथी (प्रोषधाख्या) प्रोषध नामक प्रतिमा है (पञ्चमी) पांचवी ( सचित्ताख्या) सचित त्याग प्रतिमा है ( च षष्ठी) और छठी प्रतिमा (रात्रि भुक्तिपरित्यागात् ) रात्रि भुक्ति परित्याग की अपेक्षा से है । ( सप्तमी ) सातवी प्रतिमा (ब्रह्मचर्याख्या) ब्रह्मचर्य नामक प्रतिमा है (अष्टमी आरम्भत्यागतो) प्रारम्भ परित्याग की अपेक्षा से श्रावी प्रतिमा है । ( नवमी ) नवमी ( परिग्रह परित्यागा) परिग्रह परित्याग नामक ( प्रतिमा मता) प्रतिमा मानी गई है ( दशमी) दशमी (शुभा ) श्रेयकारी ( नानुमत्याख्या) अनुमति त्याग नामक (प्रतिमा) प्रतिमा है । (च) और ( एकादशी ) ग्यारहवी प्रतिमा (नोहिष्ट भ्रामरी) उद्दिष्ट त्याग कर भ्रामरीवृत्ति से शाहार यदि लेना है ऐसा (सुघोत्तमैः प्रोक्ता ) श्रेष्ठ विद्वानों ने कहा है ।
भावार्थ - यहाँ प्राचार्य ने क्रम से ११ प्रतिमानों के नाम बताये हैं-- (१) दर्शन प्रतिमा ( २ ) व्रतप्रतिमा ( ३ ) सामायिक प्रतिमा ( ४ ) प्रोषध प्रतिमा ( ५ ) सचित्तत्याग प्रतिमा ( ६ ) रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा ( ७ ) ब्रह्मचर्यं प्रतिमा (८) श्रारम्भ त्याग प्रतिमा (६) परिग्रह त्याग प्रतिमा (१०) अनुमति त्याग प्रतिमा ( ११ ) उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा इस तरह ग्यारह प्रतिमा रूप श्रावक के व्रत आगम में बताये गये हैं । यहाँ श्रावकों के इन ग्यारह दर्जी का नाम ही प्रतिमा है। प्रतिमा का अर्थ बिम्ब अर्थात् आकार विशेष नहीं है ।७१, ७४।
एतासां लक्षणञ्चापि क्रमेण शिवकारणम् । श्रृण त्वं भो प्रवक्ष्येऽहं श्रीपालप्रभुसत्तम ॥७५॥