SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीपाल चरित्र सप्तम परिच्छेद] अन्वयाथ -(एवं उच्चैः युद्धं विधाय) इस प्रकार घोर युद्ध कर (सुभटाग्रणिः) सुभटों में अग्रगण्य (श्रीपालः) श्रीपाल ने (वीरादिदमन) वीरदमन को (जित्वा) जीतकर (पौरूषात्) पौरूष से अर्थात् अपने बल से (किल) निश्चय से (बबन्ध) बांध दिया। भावार्थ--कोटिभट सुभटों में अग्रगण्य श्रीपाल ने भयङ्कर युद्ध कर उस वीर दमन राजा को अपने प्राश्चर्यकारी पौरुष बल से जीत लिया और बाँधकर डाल दिया ॥५१।। -- -- -... - --- मार्गदर्शक AR MIND सत्यं जयो भवेन्नित्यं भतले पुण्यशालीनाम् । तथा लक्ष्मीश्च कीर्तिश्च तेषां किञ्चिन्न दुर्लभः ॥५२॥ अन्वयार्थ ---(भूतले) पृथ्वी पर (पुण्यशालीनाम् ) पुण्यवान् जीवों की (नित्यं) सदा (जयो भवेत्) विजय होती है (सत्यं) यह सत्य है। (तथा) तथा (तेषां) उनके (लक्ष्मीः च कोतिः च) धनादि वैभव सम्पत्ति और यश कीर्ति प्रादि (किञ्चित् न दुर्लभः) कुछ भी दुर्लभ नहीं है। भावार्थ--यह बात पूर्ण सत्य है कि इस पृथ्वी पर जो पुण्यशाली जीव हैं उनकी सदा विजय होतो है । लक्ष्मी कीर्ति आदि कुछ भी उनके लिये दुर्लभ नहीं है । दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी उसे पुण्य से अनायास ही प्राप्त हो जाती है ।।५।।
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy