________________
श्रीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद]
[३८६
गत्वा तं भूपति नत्वा दत्त्वा पत्रं जगाविति । भो प्रभो मे प्रभुर्नाम्ना श्रीपालः परमोदयः ॥१४६।। साधयित्वा बहून् देशान् जित्या भूपशतानि च । कन्यारत्नसहस्राणि परिणीय गुणोज्वलः ॥१४७।। नानारज जुन गदि मणिमुक्ताफलादिकम् । गृहीत्वा सम्पदासारं प्रतापजित भास्करः ।।१४।। दानी दीनादिकेषच्चः कोटिभट शिरोमरिणः ।
सुधीस्सर्व बलोपेतस्स स्वामी त्वां समादिशत् ।।१४६।। अन्वयार्थ--उस दूत ने (गत्वा ) जाकर (तं भूपति) उस प्रजापाल राजा को (नया) नमस्कार कर (पत्रं दत्त्वा) पत्र देकर (इति जगौ) इस प्रकार कहा (भो प्रभो!) हे स्वामी ! (मे प्रभः) मेरा राजा (श्रीपाल:) श्रीपाल है (परमोदयः) जो परम उदयशाली है अर्थात् भाग्यशाली है परमोन्नति को प्राप्त हैं। (गुणोज्वल:) उज्जवल गूगों का धारी है। (भपअतानि जित्वा) सैकड़ों राजाओं को जीतकर (बहून् देशान् साधयित्वा) बहुत देशों को स्वाधीन कर (कन्यारत्नसहस्राणि परिणीय) सैकड़ों कन्याओं के साथ विवाह कर (नानारत्मसुवर्णाह) अनेक प्रकर के रत्न, सुवर्णादि और (मणिमुक्ताफलादिकम् ) मणि और मोतियों को (सम्पदासारं गृहीत्वा) सारभूत सम्पत्तियों को लेकर (प्रतापजितभास्कर ) अन्य राजाओं को अपने प्रताप से जीत लिया है जिनने ऐसे प्रभावशाली सूर्य स्वरूप (दीनादिकेषु उच्चः दानी) दीन दुःखियों को इच्छित उत्तम वस्तु प्रदान करने वाले श्रेष्ठ दानी हैं (सुधीः) बुद्धिशाली (सर्व बलोपेतः) सबमें वलिष्ठ (कोटिभट शिरोमणिः) कोटिभट शिरोमणि (स: स्वामी) उस श्रीपाल महाराज ने (त्वां) तुमचो (यह) (समादिशत ) आदेश दिया है ।
भावार्थ ...उस दूत ने विनय पूर्वक प्रजापाल राजा को नमस्कार कर आदेश पत्र देकर सर्वप्रथम अपना तथा अपने स्वामी का परिचय दिया । वह कहने लगा कि आपके लिये आदेश पत्र देकर महामण्डलेश्वर महाराजा श्रीपाल ने मुझको भेजा है। मैं श्रीपाल महाराज का दूत हैं। हमारे स्वामी परम उज्ज्वल गुणों के धारी और परम अभ्युदयशाली हैं। उन्होंने सैकड़ों राजाओं को अपने बल प्रताप से जीतकर बहुत देशों को अपने आधीन कर लिया है और सैकड़ों कन्याओं के साथ विवाह कर मणि मुक्ता, सुवर्ण रत्नादि श्रादि सारभूत सम्पतियों के अधिपतित्व को पाकर महामण्डलेश्वर पद को प्राप्त कर लिया है । हमारे स्वामी कोटिभर शिरोमणि अर्थात सबमें बलिष्ठ हैं तथा परंम उदार दानी भी हैं । प्रजाजनों को तथा याचकजनों श्रेष्ठ इन्दितवस्तु प्रदान कर सन्तुष्ट करने वाले वे जन-जन के लिये मनोहारी और प्रशंसनीय भी हैं ऐसे श्रेष्ठ गुणों के निधि सूर्य से भी अधिक प्रतापशाली श्रीपाल महाराज ने आपके लिय यह आदेश पत्र दिया है ।।१४६ से १४६।।