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श्रीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद ]
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महिमा को उसने प्राप्त कर लिया था। उस देश के अनेकों क्षत्रिय राजाओं की दो हजार रूप लावण्य कलाविज्ञान चतुर कन्याओं के साथ विवाह किया। उस समय संकडों महोत्सव हुए। यथासुख भोगोपभोग में निमग्न वह आगे बढा । मस्लिवाल महादेश में जा पहुँचा । वहाँ भी उसके पुण्य प्रताप से अनेकों विभूति सहित सात सौ ( ७०० ) कन्या रत्न प्राप्त हुए। सबके साथ यथाविधि विवाह कर कलिङ्गदेश में पहुँचा । वहाँ पुनः एक हजार अन्य कन्याओं से विवाह किया। सबके साथ प्राप्त धन, बल, दल सेना आदि वैभव के साथ पुनः आमोद-प्रमोद करता हुआ दल पतन ( द्वीप ) में आया । विख्यात राजा धनपाल ने उसके राजवंभव को देख महान संतोष प्राप्त किया तथा अत्यन्त आनन्द से समस्त रानियों सहित उसका भव्य स्वागत किया । कुशल-क्षेम पूछी। प्रमोद भाव से परस्पर मिले। इसी प्रकार यहाँ उपस्थित रानियाँ इन नवागत रानियों के साथ मिलकर परस्पर परम हर्ष को प्राप्त हुयों मानों जन्मान्ध को निर्दोष स्वच्छ नेत्र ही प्राप्त हुए हो ।। ६५ से ७४ ।।
तत्र स्थित्वा कियत्कालं स श्रीपाल महानृपः । सुधीस्सर्वं प्रियोपेत सुखं भुञ्जन्मनोहरम् ॥७५॥ एकदा स निशामध्ये चिन्तयामास मानसे । अस्थाहो शरणकालो गतो बहुतरो मम ॥ ६६॥
तो यदि न यास्यामि द्रुतभुज्जयिनी पुरिम् । स्वाध मत्प्रियाऽवश्यं ग्रहिष्यति तपोधनम् ॥७७॥
अन्वयार्थ - ( तत्र ) वहाँ दलबर्तनपुर में (सर्व) समस्त ( प्रियोपेत ) प्रियाओं सहित ( मनोहरम् ) सुन्दर प्रिय ( सुखम् ) सुख (भुजन ) भोगते हुए ( सुधी) विद्वान् ( महानृप ) महाभूपति ( स ) वह (श्रीपाल : ) श्रीपाल ( कियत्कालम् ) कुछ समय ( स्थित्वा ) रहकर (एकदा) एक समय ( स ) वह (निशामध्ये ) रात्रि में ( मानसे) मन में ( चिन्तयामास ) विचारने लगा, ( ग्रहो ! ) आश्चर्य ( मम ) मेरा ( बहुतर: ) बहुत सा (काल) समय ( शर्मा ) सुख पूर्वक ( गतः ) चला गया (अतः ) अनएव ( यदि ) अगर (स्व) अपनी (श्रवधौ ) अवधि पर ( द्रुतम) शीघ्र (उज्जयिनोपुरिम्) उज्जयिनी नगरी ( न यास्यामि) नहीं जाऊँगा तो ( मत्) मेरी (प्रिया) रानी (अवश्यम् ) अवश्य ही (तपोधनम् ) तप रूपी धन को (ग्रहिष्यति ) ग्रहण कर लेगी।
भावार्थ सुख का समय व्यतीत होते देर नहीं लगता । श्रीपाल महाराज का भी अपनी नवोढा प्रियायों के साथ राग-रङ्ग में ग्रामोद-प्रमोद करते सुखपूर्वक कितना ही काल चला गया, कभी सोचा ही नहीं किधर समय जा रहा है और कितना निकल गया । फिर भी हृदयकोर में प्रति भाव कब तक दबे रह सकते हैं ? स्नेह का धागा हिला और उसके मानस को झकझोर दिया। एक दिन अर्द्धरात्रि का सन्नाटा | परन्तु श्रीपाल भूपाल के हृदया