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________________ २५४] [ श्रीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद सूर्य की किरों हैं ( ता ) जो (तन्मुख्या) उनमें प्रमुख ( एवं ) इस प्रकार बोली कि ( यो ) जो (क) कोई (अपि) भी (सत् ) उत्तम ( बुरः ) शूरवीर ( श्रस्माकम् ) हमारी ( समस्या . ) समस्याओं को (पुरमिष्यति ) पूरी करेगा (सः) वह (एव) ही (अस्माकम् ) हमारा ( पतिः ) भर्ता हो, (च) और ( सर्वासाम् ) उन सभी क्या ( सारकन्यानाम् ) उन उत्तम कन्याओं का ( ध्रुवम् ) निश्चय ही (अन्य ) दूसरा ( कोऽपि ) कोई भी ( प्रियः) प्रिय (न) नहीं है। ( प्रभुः) प्रतिमाधारी (सत्तम: ) महान् ( श्रीपाल : ) श्रीपाल ( तस्याः ) उन कन्याओं के सम्बन्धी ( इति ) इस प्रकार के ( वचः ) वचन ( आकर्ण्य ) सुनकर ( तत्र ) वहाँ ( गत्वा ) जाकर (ता: ) उन ( कन्यकाः ) कन्याओं को ( समालोक्य) सम्यक् अवलोकन कर ( प्रभुः ) श्रीपाल ( सजग ) बाला ( अहो ) भो ( धन्या ) धन्य धन्यरूपा (कन्या) कन्याओं ( यथा ) जैसा ( इप्सितम् ) इष्ट आपका ( स्वाभिप्रायम् ) अपना अभिप्राय (ब्रूहि ) कहो ( युभाकम् ) आपको (शर्मदायकाः) शान्ति देने वाली ( समस्या ) समस्याओं को ( पूरियिष्यामि) पूर्णकरूंगा (तत्) उसे ( निशम्य ) सुनकर (ता: ) उन्होंने ( क्रमेण ) क्रमश: ( उच्चैः ) पुर्णतः ( स्वमनोगतम्) अपने-अपने मनोगत बिचार (प्रो: ) कहने प्रारम्भ किये। भावार्थ---प्राय वर की महामटेके उन कन्याओं का परिचय देता है । १६०० कन्याओं का नाम लिखना और समस्याओं का निरूपण करना एक पृथक हो शास्त्र तैयार करना है । अतः यहाँ मात्र प्रमुख प्राठ कन्याओं का ही विशेष वर्णन किया है। उन ग्राठों में भी प्रथम का नाम सोभाग्यगौरी, दूसरी श्रृङ्गारगोरी, ३ पौलोमी ४ रण्णादेवी, ५. सोमा, ६ लक्ष्मी, ७ पद्मिनी और चन्द्ररेखा नाम की पुत्रियाँ हैं । ये सभी एक दूसरी से होड लगाये ज्ञान, विज्ञान, कला शास्त्रों को ज्ञाता हैं, विलक्षणमति सम्पन्ना है, उनके प्रभाव से प्रतीत होता है मानों कलारूपी पद्मिनियों की पंक्तिमाला को विकसित करने वाली रवि को किरण ही धरा पर आई हैं । वह दूत वाहता है हे प्रभो ! इनमें सर्व ज्येष्ठ कन्या ने कहा है कि जो बुद्धिशाली, गुणवान् महाशूरवीर सत्यपुरुष हमारी समस्याओं को पूर्ण करेगा वही हमारा भर्त्ता होगा अर्थात् पत्ति बनेगा । हम सभी कन्याओं का निश्चय से यही प्रण है अन्य से हमें कोई प्रयोजन नहीं । उन सारभूत गुणों की खान कन्याओं के विषय में इस प्रकार की विज्ञप्ति सुनकर श्रीपाल महाराज कङ्कणपुर में उपस्थित हुए। उन रूप लावण्यमयी गुणज्ञकन्याओं को अवलोकन कर प्रमोद से बोला, भो धन्यभागिनियो ! आप लोग अपने-अपने मनोभावों को व्यक्त करिये में शान्तिदायक, सुख प्रदायक समस्या पूरती करूँगा । आपका युक्ति-युक्त समाधान करूँगा । इस प्रकार श्रीपाल महाराज के वचन सुनकर वे क्रमशः अपनेअपने मनोगत विचारों को प्रकट करने लगीं ।। ३१ से ३७ ।। श्राह सौभाग्यगोरीति "सिद्धि साहसतो भवेत्" । शेवत्रय पदान्येषाः स्वधियाशुजगी बुधः || ३८ ॥ अन्वयार्थ - - ( सौभाग्यगौरी) सोभाग्यगौरी (इति) इस प्रकार ( ग्राह) बोली, ("सिद्धिसाहसतो भवेत् " ) “सिद्धि साहस से हो" ( ऐपा:) इसके ( शेष ) बाकी (त्रय) तीन
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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