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________________ श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद ] ततो भ्रान्त्यातिरुष्टेन भू भुजा तेन सत्वरम् । द्विधा कतु भिमंतीचं नोचहस्ते समर्पितम् ॥ १३५ ॥ । [ ३१६ अन्वयार्थ - - ( ततः) श्रीपाल से उत्तर न पाकर ( भ्रान्त्या ) भ्रमवश ( तेन ) उस ( अतिरुष्टेन ) अत्यन्त कुपित हुए ( भूभुजा) राजा ने ( सत्वरम् ) शीघ्र ही ( इमम् ) इस (नीम ) नीच श्रीपाल को (द्विधा ) दो टुकडे ( कर्तुं म) करने के लिए (नीचहस्ते ) चाण्डाल के हाथ में (समर्पित :) दे दिया | भावार्थ ओपाल के मौनभाव रूपी घृत ने भूपति की कोपाग्नि को प्रति तीव्ररूप में प्रज्वलित कर दिया । श्रागे-पीछे के विचार बिना ही उसने शीघ्रता से चाण्डाल शूलीरोहण करने वाले को बुलाया और उसे प्राज्ञा दे डाली कि "इस दुष्ट धोखे बाज मूर्ख श्रीपाल को मृत्यु के घाट उतार दो, बिना विलम्ब इसके दो टुकड़े कर डालो। फिर क्या था ? इधर जाल रचने वाले हर्षित हो रहे थे, उधर चाण्डाल श्रीपाल को हाथ-पांव में बेडी डाले ले जा रहे थे । इस अनहोनी प्राकस्मिक घटना से पूरा पुर उथल-पुथल हो गया । वेतार के तार की भाँतियह समाचार चारों और उस द्वीप के घर-घर में जा पहुँचा और सर्वत्र इसकी कटु आलोचना, क्रिया. प्रतिक्रिया, चर्चा वार्ता होने लगी ।। १३५।। तब क्या हुआ --- तदान्तः पुर पौराधैर्हाहाकारः पुरेऽभवत् अभ्येत्य गुणमालां काचित्सखीत्याह सुन्दरीम् ॥। १३६ ।। करोषि मण्डनं कस्यार्थं यतस्तेऽद्य बल्लभः । नीयते मारणार्थं स मातङ्गजाति- दोषतः ।। १३७॥ अन्वयार्थ - ( तदा ) तब ( पुरे ) पुर में ( अन्त: पुरपराद्यः) रनवासी और पुरवासियों द्वारा ( हाहाकार:) हा हा कार ( अभवत् ) फैल गया - हो गया उसी समय ( काचित् ) कोई (सखी) सहेली (सुन्दरी) सुन्दरी ( गुणमाला) गुणमाला को ( अभ्येत्य ) प्राप्तकर ( पासजाकर ) ( आह) बोली ( त्वम् ) तुम ( कस्यार्थम् ) किस के लिए ( मण्डनम) शृंगार ( करोषि ) करती हो ( यतः ) क्योंकि ( अद्य ) आज (ते) तुम्हारा ( वल्लभः) पतिदेव (सः) वह श्रीपाल ( मातङ्गजातिदोषतः ) चाण्डाल जाति का है इस दोषारोपण से ( मारणार्थम् ) मारने के लिये (नोयते) ले जाया गया है । भावार्थ - विद्यतगति से श्रीपाल का मृत्युदण्ड समस्त पुर में व्याप्त हो गया । गुणीउदार सज्जन किसका प्रिय नहीं होता ? उदार चरितानां वसुधैव कुटुम्बकम् उक्ति का श्रीपाल अपवाद न था । वह जिस दिन से राज जँवाई हुआ उसके पहले ही पुर प्रवेश समय से ही जन जन के गले का हार हो गया था। इस प्रप्रत्याशित कराल दुर्घटना से प्राबाल-वृद्ध सभी हा हाकार कर उठे । काम धाम आहार पान सब कुछ छोड़ कर श्रीपाल के पीछे दौड पडे । कोई राजा को निन्दा करना, कोई इन नटों को कोशता, कोई राजा की अदूरदर्शिता प्रकट करता,
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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