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[श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद
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इति कोलाहलं कृत्वा कारयित्वा परानपि ।
श्रीपालपातनोपायं सञ्चके दुष्टमानसः ॥२६॥ अन्वयार्य---(पापी) पापकर्मी (दुराचारी) दुष्ट (सः) उस वणिक् ने (अपि) भी (धनलोभेन) धन के लोभ से (मायया) मायाचार पूर्वक, "अयम) यह (महामह विशालमगरमच्छ (उच्छितः) उछल पाया (सर्वनाशम ) सम्पूर्ण विनाश (करिष्यति) करेगा" (इति) इस प्रकार (कोलाहल करवा) जोर से हल्ला मचाकर (परान) दूसरों से (अपि) भो (कारयित्वा) करवाकर (दुष्टमानसः) खोटे अभिप्राय से (श्रीपालपातन:) श्रीपाल के सागर में गिराने के (उपायम ) उपाय को (सञ्च) किया।
मावार्य-धबल सेठ के कथनानुसार उस लुब्धक पापी व्यापारी ने उपाय सोच ही लिया । ठीक ही है हेय और असत् कार्यों में स्वयं हो बुद्धि प्रवर्तती है, पि.र निमित्त मिला तो क्यों न जाती। उस दुष्ट ने श्रीपाल के मारने के अभिप्राय से मायाचार का जाल फैलाया । रात्रि का सन्नाटा छा गया । सर्वत्र निन्द्रा को गोद में पड़े नर-नारियों को नाशिकास्वर घरघर करने लगे। उस समय उस पापात्मा ने असन्य कोलादल मनाना प्रारम्भ किया. नथा अन्य साथियों से भी करवाया कि "जहाज में महामत्स्य उछलकर आया है, यह सर्वनाश करेगा।" संभव है जहाज डूब जाये" आओ, दौडो, उठा, भगो के साथ चारों ओर दौडा-दौडी मच गई। सभी भय से थरथराने लगे । जाने-अनजाने सर्वजन उसी के स्वर में स्वर मिला कर रोने, चिल्लाने कूदने-फोदने लगे। यान पात्रों में सर्वत्र यह अशुभ किन्तु झूठा भय का भूत व्याप्त हो गया। उसी समय कोटिभट की निद्राभङ्ग हुयी, वह जागा और वेग से इस अप्रत्याशित घटना का यथार्थ पता लगाने का प्रयास करने लगा। सत्य ही दयाल, परोपकारी महात्मा जन पर की रक्षा में अपने अपाय को चिन्ता नहीं करते । वह सबको धैर्य बंधाता इस सङ्कट के निवारण में जुटा ।।२५, २६।।
श्रीपालस्तु तवाकणं तं द्रष्टु सुभटाग्रणी। रज्जास्तम्भोपरि यदा संझटन् जवतो महान् ।।२७॥ रज्जु छित्वा तवा शीघ्र पातितस्तेन सागरे ।
तारशस्स पवित्रात्मा कि पातकमतः परम् ॥२८॥
अन्ययार्थ--(तदा) उस समय (सुभटाग्रणो) वीर शिरोमणि (श्रीपालः) श्रोपाल (तु) तो (त) उस मत्स्य को (दृष्टुम ) देखने के लिए (महान्) अत्यन्त (जवत:) वेग से (यदा) ज्यों हो (रज्वास्तभोपरि) रस्सी के सहारे मस्तूल पर (संझटन्) उछलकर चढने लगा (तदा) उसी समय (तादृशः) वह श्रीपाल (पवित्रात्मा) पावन भाव रखने वाला (सः) वह श्रीपाल (शीघ्रम् ) शोघ्र ही (तेन) उस मायाचारी वणिक् द्वारा (रज्जु') रस्सी को (छित्वा) काटकर (सागरे) समुद्र में (पातितः) गिरा दिया गया, (अत: परम) इससे बढ़कर (पातकम् ) पाप (किम ) क्या ?