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________________ २३६ ] [श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद रहे थे तथा कोई-कोई जल का प्रमाण वर्णन करने में ही मस्त थे । इस प्रकार अनेक प्रकार से मनोरञ्जन करते जा रहे थे ।।७२।। कोचिन्हमालाग मोरा रक्षन्तिस्म सुयत्नतः। केचिद्धर्मकथां भव्याः कुर्वन्तिस्म स्वलीलया ॥७३॥ अन्वयार्थ---(केचित्) कोई (वीराः) सुभट (महध्वजान्) उत्तुङ्ग पताकारों की (सुयत्नतः) प्रयत्नपूर्वक ( रक्षन्ति) रक्षा कर रहे (स्म) थे (केचित्) कोई (भव्याः) भव्य जन (स्वलीलया) नाटकीय ढंग से (धर्मकथाम् ) धार्मिक कथा (कुर्वन्तिस्म) कर रहे थे । भावार्थ---उनमें से कुछ लोग महाध्वजाओं की सार सम्हाल कर रहे थे । देख-भाल में लगे थे । कुछ भव्यजन सुन्दर प्रदर्शन पूर्वक धर्मकथा सुनाकर सुनकर आनन्द ले रहे थे ।।७३ ।। चलानि यानपात्राणि रेजिरे सागरे तदा । नक्षत्राणि यथा व्योम्नि निर्मले विपुले तराम् ॥७४।। अन्वयार्य-(तदा) उस समय (सागरे) समुद्र में (चलानि) चलते हुए (यानपात्राणि) जहाज (रेजिरे) ऐसे शोभायमान हो रहे थे (यथा ) जैसे (विपुले) विस्तृत (निर्मले) स्वच्छ (व्योम्नि) आकाश में (नक्षत्राणि) नक्षत्र समूह (तराम् ) अत्यन्त (रेजिरे) शोभते हो । भावार्थ अगाध और अपार जल राशि को चीरते जहाज चले जा रहे थे । सागर का नीलवर्ण नोर प्राकाम सा प्रतीत होता था। वे जहाज नक्षत्रों की भांति यत्र-तत्र चमक रहे थे। उस समय का दृश्य एक भ्रमोत्पादक सा हो रहा था। ऊपर आकाश है या भूपर यह भान नहीं पाया जा सकता था। अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार मेघ रहित स्वच्छ आकाश में चमकते हुए नक्षत्र-तारागण सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार सागर के निर्मल जल में तैरते हुए सुसज्जित नौकाएँ शोभायमान हो रहीं थीं ।।७४।। महाकल्लोलसध्वस्तैमहाध्वनि समन्वितैः । सरेजे सागरस्तत्र महत्वं वा ब्रू वरिजम् ॥७५।। अन्वयार्थ - (स) बह सागर (महाकल्लोल) उत्ताल तरङ्गों के (ध्वस्त:) उठ कर गिरने से (महाध्वनि) गर्जन से (समन्वितेः) युक्त (वा) मानों (तत्र ) उस समय (निजम्) अपने महत्व को (अवन्) कहता हुप्रा (सागरः) समुद्र (सरेजे ) शोभायमान हुआ । भावार्य उस समय पवन से प्रेरित उत्ताल तरङ्ग-ज्वार-भाटा का उत्थान पतन हो रहा था। सागर तेजी से गरज रहा था । मानों अपने गम्भीर नाद से स्वयं की प्रभुता का ही बखान कर रहा था। उस समय उसकी शोभा अद्वितीय हो रही थी ।।७५।। अथवा बह सिन्धु कह रहा था .
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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